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बैन युग
१-४-1८४०
श्री सम्मेत शिखरजीकी
पुरी में जल मन्दिर की भव्यता देखकर मनुष्य कितना
भी उदास हो एक बार तो उस वीर प्रभु की इस मेरी यात्रा पुण्यमयी निर्वाण भूमि को स्पर्शकर पुलकित हो और उस संबंधि कतिपय विचार.
जावेगा। मुझे तो पावापुरी में इतना आनंद आया कि ( लेखकः--सुंदरलालजी जैन.)
शायद किसी भी तीर्थ पर नहीं आया होगा। जिसे . (गतांकसे चालु)
अपनी आत्मा को उच्च बनाना है उसे ऐसी पवित्र यहां पांच पहाडियां है जिन पर मन्दिर चरण भूमि में होकर प्रभु के चरणों में बेठ जाना चाहिये। पादुका बने हैं. दो दिनमें आराम से ५ पहाडों की यात्रा यहां ध्यान में कितना आनंद आता है वर्णन नहीं हो जाती है। करनेवाले एक दिनमें भी करते हैं। किया जा सकता। मंदिर की व्यवस्था बहत अच्छी समयका पता यहीं लगता है कहां श्रेणिक राजाकी
है। कर्मचारी लोग पूरी सेवा करते हैं। मुझे तो जाहोजलाली-कहां आजकी राजगृही। मुनिसुव्रतस्वामी यह पूर्ण विश्वास हो चुका है कि जैन इतिहास में के चार कल्याणक यहां है. अहिंसा के अवतार श्री अगर कोई पुण्यभूमि है तो यही पावापुरी है। वीर प्रभने १४ चौमासे इसी विशाल नगरी में किये और मेरा तो हरएक जैन से अनुरोध है कि थे पर आज इसी विशाल नगरी में चंद झोंपड़ों के अगर वह अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं सिवाय कुछभी नहीं। यहां खुदाई का काम हो तो तो अवश्य ही जीवन में एक बार इस पुण्य भूमि का बहुत कुछ माचीन अवशेष अभी निकल सकते हैं। स्पर्श कर उस वीर परमात्मा की विभूति को अपनाऐं। जैनों के धनी मानी सज्जनों को चाहिये इस ओर जल मन्दिर में प्रभुका संस्कार हुआ है। यहां के लक्ष्य दें, ताकि इस विशाल धर्म के इतिहास का सुवर्ण चरण अत्यन्त जीर्णावस्था में है। व्यवस्थापकों को युग आजभी संसार के सामने आ जाये। पांच चाहिये कि अब इन चरणों पर केसर न चढाने दें पहाडों के नामः-विपुलगिरि, रत्नगिरी, उदयगिरी, अन्यथा यह प्राचीन चिन्ह भी नाम शेप हो जावेगा। सुवर्णगिरी और वैभारगिरी।वैभारगिरि पर खोद काम जो लोग मूर्ति पूजा को जैनों में नई चली मानते हैं से कुछ जैन, वैष्णव मृतिय मिली है जो कुछ तो वहीं उन्हे एक बार इधर आ कर अपने भ्रम को मिटा रखी हैं और कुछ नालंदा चली गई प्रतीत होती है। लेना चाहिये। गांव में विशाल मन्दिर में प्रभु की मृतियां बड़ी प्राचीन है। कइ मूर्तियों में स्पष्ट निवार्ण भूमि हैं। व्यवस्थापकों को चाहिये कि वीर सिर के बाल है। कड पर बिजोरा हाथ में है। प्रभु के जीवन की लीलाऐं जल मन्दिर में चित्रित का पर ननत्व को ढांकने के लिये कपडे का पूरा कर दें ताकि हरएक दर्शक के दिल में उस संसार के निशान हैं। कइयों के शिर की आकृति भी भिन्न आदर्श स्वरूप महान विभूति का वास्तविक चित्र प्रकार की है। मुझे तो यही प्रतीत होता है कि यह हृदय पर अंकुरित हो जावे। मेरे पास तो इतनी बहूत पुराने जमाने की मूर्तियें है। पूरा शोधखोल शक्ति नहीं जो मैं इस पुण्य भूमिका वर्णन कर सकुं। होनेसे ही ठीक पत्ता चल सकता है। राजगृही में मेरे हृदय पर इस पुण्य भूमिका अद्भुत प्रभाव हुआ शालिभद्र शेठ की त्रिर्माल्यक हुआ तथा श्रेणिक राजाका है। पावापुरी से मोटर करके हम लोग गुणाबाजी भंडार की दिवाल खुदाइ से निकली है। राजगृही में जो कि लब्धि संपन्न श्री गौतम प्रभु की केवल ज्ञान प्रबन्ध अच्छा है। धर्मशाला में सब प्रकारका आराम भमि है) गये। भव्य मन्दिर धर्मशाला है। वहां से है। राजगृही से ही मोटर करके हम कुंडलपूर दर्शन सीधा हम लोग लच्छवाट चले गये। लच्छवाड में करते हुवे सीधे श्री वीर प्रभु की पुण्यमयी निर्वाण मन्दिर धर्मशाला जीर्णावस्था में है। ऐसा मालूम देता भूमि पावापुरी पहुंच गये। कुंडलपुर में मंदिर धर्मशाला है व्यवस्थापक कभी अपनी आंखों से देखने भी है। श्री गौतम स्वामी की जन्म भूमि है। पास ही नहीं आते। नालंदा की खुदाई मेंसे निकले अवशेष हैं। पावा
(अपूर्ण.)
આ પત્ર શ્રી. મનસુખલાલ હીરાલાલ લાલને શ્રી મહાવીર પ્રી. વર્કસ, સીલવર મેનશન, ધનજી શ્રીટ, મુંબઈ ખાતેથી છાપ્યું, અને મી, માણેકલાલ ડી. મેદીએ શ્રી જૈન “વેતાંબર કોન્ફરન્સ, ગેડીઝની નવી બીડીંગ, પાયધૂની, મુંબઈ ૩ માંથી પ્રગટ કર્યું છે.