SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - जैन यु. 1018-४-1८४० * श्री जैन समाज को शुभ संदेश. * भारतवर्षिय अखिल जैन श्वेताम्बर समाज की माननीय आराधक है. उनके वचनामृत का पान करनेवाले हैं तो फिर प्रतिष्टित एवं धार्मिक सामाजिक उन्नति करनेवाली भारत वर्षके हमारे हृदयों में द्वेषानल कैसे भभूक उठता है? शान्त अंदर यदि कोइ संस्था है तो केवल जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स । हो जाना चाहिये। ___ अनेक तीर्थों व भगवन्मंदरोसे अलंकृत एवं ओसवाल मेरा जैन समाज को यही शुभ संदेश है कि हम सब पोरवाल बगैरह बंधुओं का उत्पति स्थान मरुधर (मारवाड) भगवान श्री महावीर देव के संतान हैं. सब भाइ भाइ है-तो देशमें जन्म लेकर मरुधर-गुजरात, काठीयावाड, बंगाल, हमारा सबका कर्तव्य है-फरज है कि भगवान श्री महावीर दक्षिण आदि देशों का पर्याटन कर कोन्फरन्स देवी खूब के नाम पर पुनित जैन धर्म के नाम पर स्याद्वाद धर्मका फली फूली और अपने दिव्य चमत्कारों से जैन समाजको गौरव बढाने के लिए अपने हित के लिए द्वेषानल को शांत चमत्कृत को परंतु कम भाग्य से किसी बद नजर की नजर करके परस्पर के वैमनस्य को दूर कर के अनेकताको सात लगजानेसे जैन समाज में गच्छ के नामसे समुदाय के नाम से, समुद्रों से पार भगा कर घर फूकनेवाली फूट देवीका शिर देवद्रव्य के नाम से, दोक्षा और तिथि के प्रकरण से या अन्य फोड कर एकता स्थापन कर लें-सब भाई भाई प्रेमकी मजबूत अन्य कारणो से द्वेषानल बढने लगा-कुसंप रूपी ज्वालायें जंजीर में बद्ध होकर मजबूत दृढ संगठन कर लें और जैन जाज्वाच्यमान होने लगी-इसका सेक आदरणीय श्री कोन्फ- धर्मका विजय डंका संसार भरमे बजावें । रन्स दैवी को भी लगा। जिससे सुस्त होकर सुप्तप्रायः हम देख रहे हैं कि पारसी-ईसाइ-मुसलमान, व्होरा दशा को प्राप्त हुइ और निद्रा के घूहाटे लेने लगी। सनातनी-आर्य समाजी वगैरह अपने धर्म के लिए अपने इसके विचक्षण महान् कार्यकर्ता व उपासक लोग मन्तव्य भेद को अपने पास रख कर (भूलाकर) अपने इस को जगानेके लिए भरसक प्रयत्न किये और अब कर धर्मका गौरव बढाते है, धर्मोन्नति करते हैं, इसो. तरह हमाग रहे हैं परंतु सफलता दिखाइ नहीं देती, मेरी रायमे तो कार्य भी फरज है कि अपने अपने मन्तव्य भेद को भूलाकर कर्ताओंको चाहिये कि प्रथम कोन्फरन्स (महा सभा) मैया (अपने पास रख कर) जैन धर्मका गौरव दिन दूना रात के भक्तों का मजबूत संगठन कर लेवें और इस संगठन रुपो चौगुना बढावें और जैन धर्म पूर्ववत् खूब फूले फाले, सब मनबूत अखंड हथीयार को अपने हाथ में लेकर मिरचों की जीव पुनित जैन धर्म की छत्र छाया में आकर आत्म कल्याण धूनी देनी चाहिये जिस से बद नजर की नजर उतर जाय- करें अपने मनोरथ पूर्ण करे। दूर हा जाय र कन्फिरन्स मैया फिर पूर्ववत चमक उठे यह कब बन सकता है जब सब श्री जैन और अपने दिव्य तेज से सबको अंजित करे। कोन्फरन्स देवी के झंडे के नीचे आवेगें तब । मेरी समजमें नहीं आता कि जिस धर्ममें-जिस समा लेखक, जमें हमेशां या धार्मिक शुभ प्रसंगो पर यह उद्घोषणा की आचार्यवर्य श्रीमद्विजयवल्लभसूरिजी महाराजके शिष्यरत्न जाती है, यह शुभ भावना भाइ जाती है, यह उच्चारण किया स्वर्गीय उपाध्यायजी श्री सोहनविजयजी महाराज के शिष्य जाता है कि "श्री श्रमणसङ्कस्य शान्तिर्भवतु, श्री पौर पन्यास समुद्रविजयजी गणि. जनस्य शान्तिर्भवतु, श्री जनपदानां शान्तिर्भवतु, श्री हुशीआरपुर. (पंजाब.) राजाधिपानां शान्तिभंवतु, श्री राजसन्निवेशानां शान्तिभवत. श्री गोष्टिकानां शान्तिभवतु, श्री पारमुख्याणा Life-Life was not given us to be all शान्तिर्भवतु, श्री ब्रह्म लोकस्य शान्तिभवतु" उस धर्ममें used up in the pursuit of what we must leave द्वेषानल क्यों ? इतने लडाई झगडे क्यों, इतनी कुटिलता- behind us when we die. --Mayउस समाजमें इतना इतना कुसंप क्यों? “જીવન–જીંદગી આપણને એટલા સારૂં નથી મલી કે जब हम सब श्रवण भगवान श्री महावीर देव के જયારે આપણે મરી જઈએ ત્યારે આપણી પાછળ મૂકવાના સંગ્રહ માટે જ તેને આખીયે ખરચી નાંખીએ. તાત્પર્ય એ છે सच्चे उपासक है, उन्हीका प्ररुपित स्याद्वाद रुपी जैन धर्म के नामी यो पछे.
SR No.536280
Book TitleJain Yug 1940
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dipchand Chokshi
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1940
Total Pages236
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy