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________________ - - १०४ -जन युग ता.१-१-३४. % 33 लिखा जावे कि इस बाबत पहिले से क्या कारवाई है लिखो फैसला संवत् १९७९ उसपर दरोगा भंडार धुलेव से जबाब तलब हुवा. दरोगा नं. १०१६२. धुलेब भंडार ने नामेदार से रिपोर्ट लेकर मये अपनी राय के जवाब दिया जिस मे श्रावन वदी १ म्वत १९१७ के तजवीज कुमटी इस तरमीम से मंजूर की जाये कि पहिले प्रक्षाल की आमद में से १) रोजना ओसरा वाला कुल आमदनी बमुजिव पराने संवत १९०६ और संवत सवकों को मिलना और बाद में सेवकों का लेना लिखा इस १०.१६ जमा की जाया करे इस आमदनी में से १) एक पर दोनों तर्फ से बहुत से सबूत के कागजात संवत् १९०६ रुप्या रोज सेवकों को दिया जाया करे अगर इस में सेवकों और १९१६ के परवाने सं०१९४० की कलम बंदी और को उजर हो तो उनको लाजिम है कि कुल आमदनी लेने धुलेव कुमेटी और हाकिम देव म्थान की राय पेटा होकर का हक अपना दीवानी दावा में कर साबित करा लेवे. ता अन्त में दोनों दीवानों की राय तलब की जो इस प्रकार है। तजवीज अदालत मजाज परवाना मजकूर बाला माफिक तामील हो तामील काररवाई हम्ब शरिस्ते अमल में आबे राय दोनों दिवान संवत् १९७९ कातक बदी ६ यह मुसल्लमा अमर है कि सं. १९०६ और सं. १९१६ जिस पर पण्डों ने स्वर्गीय महाराणा फतेह सिंह जी में जो परवाने जारी किये गये थे उनके बमुजब १) के सामने निगरानी की जिस पर कमीशन द्वारा जांच रुप्या रोज सेवकों को मिलने का हुक्म था मगर । कराई गई. सब मेम्बरान एक बात पर महमत न हुबे सेवकों की तर्फ से यह व्यान किया जाता है कि पर कसरत राय पण्डों के कुल आमद दिलाने की नहीं हुई. संवत् १९१६ के बाद संवत् १९१७ से वे कुल आमदनी पश्चात लेट महाराणा साहिब तो म्वर्गवास हो गये और लेते रहे है अगर ऐसा करने के वास्ते यानी कुल आमदनी वर्तमान महाराणा गद्दी विराजे. संवत १९८७ में वही लेने वास्ते कोई परवाना या नकल हुकम नहीं है अगर मुकदगा मय रिपोर्ट कमीशन आपके सामने पेश हुवा मेम्बरान कुमटी या म्होतमिम ऋषव देव जी ने अगर कभी तमाम मामले पर बडी जांच पड़ताल करके वही सं. १९७० सा रुप्या लेने से नहीं रोका तो उसकी गफलत के सबब का फैसला बहाल रखा गया जिस का सारांश इस प्रकार है। से कोई वजह नहीं है कि भंडार का नुकसान किया जाये फैसला वर्तमान महाराणा इन हालात में हम दोनों की राय में तजवीज कुमटी संवत १९८७ इस तरमीम के साथ दुरुस्त मालुम होती है कि जल दूध प्रक्षाल वगैरह की बोली के जरिये से जो आमदनी कुल आमदनी बहजिव परवाने १९०६ बो१९१६ होती है वो समस्त ओसरा वाले सेवक साकिन धुलेव लेते हैं के जमा किया करें और १) रुप्या रोज इस में इस बारे की मिसल पेश होकर लिखी जाये कि पहले हुकम संवत १९७१ कातिक बदी । हुवा उस माफिक तामील मे मेवकी को दिया जाया कर सेवकान अगर चाहते हों कंग्गा यानी कुल आमदनी बमुजब परवाने संवत १९०६ कि अपना हक कुल आमदनी लेने का हक साबित करें वो संवत १९१६ जमा किया करेगा और इस आमद में तो उनको मौका मिलना चाहिये कि सीगे दीवानी में से एक रुप्या १) रोज सेवकों को दिया करेगा अगर इस में अपना हक़ साबित करावं जब तक कि वो डिगरी हासिल सेवकों को उजर हो तो लाजिम है कि कुल आमद लेने का अपना हक दीवानी सांग में दावा कर साबित करा लेवें ना करें बमुजिव परबानेजात १००६ वो १९१६ कारखाइ ता तजवीज अदालत मजाज परवाने मजकूर वाला माफिक होनी चाहिये सं० १९७०. कातक बदी ४ तामिल करा देगा भादो बदी ९ सवत १९८७. इस हुकम के अनुसार पण्डों ने दीवानी कोर्ट में दावा दस्तखत, भी कर दिया. कुछ पंशियां भी पड़ी फरीकन का पूरा सवून भी नहीं दीवान नन्थेमल हुवा. फैसले लिखने की तो नौबत ही कहां रही अकममात ही बिला जनों की मौजूदगी दीवानी दावा पेटी में बन्द प्रभास चन्द्र. हो जाता है। और एक इन्तजामिया आर्डर द्वारा पण्डों को इम के दो दिन बाद ही महाराजकमार ने जो कुल आमद इस मद को दिला दी जाती है जिसके द्वारा महाराणा की पावर इस बार में रखते थे नीचे लिखे पति वर्ष मिलने की आशा हो जाती है इस का सार पण्डों को बजाय ३६०) वार्षिक के १००००) दस हजार सारांश का फैसला दिया। भी इस प्रकार है। मिल करा बदालत मजाज परतावा कर साबित कर लेने
SR No.536274
Book TitleJain Yug 1934
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1934
Total Pages178
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size20 MB
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