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________________ हम लोग अभी तक यह नहीं जानते कि इसका वास्तिविक कारण क्या है और नही हम लोगोंने कभी जानने की चेष्टा ही की है। . इस लिये आप लोगोंका कर्तव्य है कि इस सब प्रकारकी हानिके वास्तविक कारणको खूब दीर्घ दृष्टिस विचार कर ढूंढ निकालें । और उन कारणोंको दूर करनेके उपायोंको शीघ्रही कार्य रूपमें परिणत करें जिससे भानेवाली भयंकर परिस्थितिसे बचकर अपना अस्तिव कायम रख सकें। शिक्षा. शिक्षा समस्या तो आज इस देश भरमे जटिल है परन्तु हम एक व्यापारी कौम होते हुएभी सब समाजोंसे अधिक शिक्षा क्षेत्रमें पिछडे हुए हैं । ईसाई, आर्यसमाजी, ब्रह्मसमा जी, आदि हम से बहुते आगे हैं। ईसाईयोंने जब से भारत वर्षमें प्रवेश किया है तब से स्थल स्थलपर कॉलेज, हाईस्कूल, अनाथालय, दातव्य चिकित्सालय तथा प्रचार मिशन आदि संस्थाए स्थापित कर थोडे ही समयमें लाग्यो भारतवासियोंको ईसाई धर्मकी दीक्षा देकर अपनी जन संख्याकी वृद्धि की है। आर्य समाजने अल्प ही कालमें बहुत ही उन्नति कर ली है। पढे लिखे मनुस्यों को आर्यधर्मने च्युत नहीं होने दिया तथा अनेक गुरुकुल, कॉलेज, हाईस्कूल, अनाथालय तथा विधवाश्रम स्थापित कर दिये जिन में लाखों छात्र अभ्यास कर रहे हैं। मुस्लिम समाज में एक स्वर्गीय सर सैयद अहमद को देखिये कि जिसने अपने ही पुरुषार्थ से अलीगढ मे मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थापित कर दिया। आज जिस के द्वारा वह कार्य हो रहा है जो बडी बडी बादशाहतें न कर सकीं । देवबन्दमें उनके धार्मिक कॉलेजको देखिये जिसमें हजारों मुस्लिम छात्र वहांपर धर्मकी उच्चतम शिक्षा पा रहे हैं। कहांतक लिखें अरबस्तान, मित्र, रूमकेभी छात्र वहांपर मुस्लिम सिद्धान्तों को जानने के लिये आते हैं। पंडित मदनमोहन मालवीयजीको देखिये कि जिन्होंने संसार मात्रकी विद्याओं की सुविधा बनारस विश्वविद्यालयमें कर दी। कोसों में जिसका मकान है, हजारों की संख्या में वहां पर विद्याध्ययन कर रहे हैं मात्र इतना ही नहीं परन्तु हिन्दुधर्मके सिद्धान्तों के साथ साथ इंग्लिश विद्याओं के पदाने काभी वहां पर पूर्ण रीतिसे प्रबन्ध है। जिससे उत्तर काटमें छात्र गण धर्मसे वंचित न रहें। राधास्वामी समाजके दयालबाग आगराको जिसने देखा है वह जानता है कि इस अल्प संख्यक समाजने वह कार्य कर दिखाया है जो कोई बहु संख्यक और धनाढ्य जातियां न कर सकी। उन्होंने मात्र कॉलेज, हाईस्कुल ही स्थापित नहीं किया परन्तु एक ऐसी सुन्दर उद्योगशालाभी स्थापित की है जिसमें हर प्रकारका सामान तैयार होता है। इसी प्रकार इतर समाजोंमें और भी अनेक शिक्षण संस्थाएं हैं जिनमें श्री रविन्द्रवाथ ठाकुरका शांतिनिकेतन, आदि संस्थाएं विशेष वर्णनीय हैं. यह तो इतर समाजोंकी परिस्थिति है। अब आप अपनी समाजकी ओर ध्यान दीजिये। एक भी ऐसी उच्चतम संस्था नहीं है कि जहांपर लौकिक ओर धार्मिक दोनों विषयोंकी उच्चतम प्रणालीसे शिक्षाका प्रबन्ध हो। अधिकतर पाठशालाए ऐसी हैं जो मात्र तोता रटाई करा कर ही छुट्टी पा जाती है जिसका परिणाम यह होता है कि कई वर्षों तक अभ्यास करनेपर तथा समाजका लाखों रुपया स्वाहा करनेपर भी विद्यार्थियों के दृदय पर जैन धर्मकी छाप नहीं पड़ती। उल्टा कई विद्यार्थी तो विरक्त हो जाते हैं और फिर जैन धर्मके अभ्यासका नाम तक भी नहीं लेते। इसलिये ऐसी संस्थाओंकी शिक्षण प्रणाली बदलनेकी अत्यंत आवश्यक्ता है।
SR No.536274
Book TitleJain Yug 1934
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1934
Total Pages178
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size20 MB
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