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________________ ४० - युग - ता. १५-3-32 (अनुसंधान पृष्ठ ४६ से चालु) इस शुभ अवसर पर आपको अनेक विद्वानों के व्याख्यान के लिए विदेशी कपडा ही लीजिये। इस करको सर्व प्रथम मनोहर भजन, विद्यार्थियों के भाषण तथा बाद-बिबाद सुनने तो कपड़े का खरीदार (Importer) हो गया परन्तु अन्त और विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई वस्तुओं से सुशोभित प्रदमें इसका भार व्यौहार करने वालों (consumers) पर पर शिनी व विविध खेलों और फौजी ड्रिल के देखने का आनन्द ही पड़ेगा। प्राप्त होगा। आप से आग्रह पूर्वक प्रार्थना है कि आप अपने करों का भार विशेष रूपसे धनियोंपर ही पडना चाहिये। मित्रों व परिवार सहित पधार कर उत्सव की शोभा बढ़ाने वेचारे गरीबोंको, जिनको भर पेट भोजन ही नहीं मिलता, की कृपा करें। इसके बोझ से जहां तक हो बचाना चाहिए। परन्तु इस कीर्तिप्रसाद जैन, B. A. L. I. B. मानव अधिष्ठाता गुरुकुल । अप्रत्यक्ष कर indirect tax का तो असर गरीब एवम् अमीर दोनों पर एक-सा ही पड़ता है। इसलिये जहां तक नायना मुसा 42. ४२१॥ भारे मभने भन्या छे. हो जीवन की साधारण जरूरतों पर कर नहीं होनी चाहिये। ५४ार ५७शे. અમારા તરફથી તૈયાર થતો “જૈન તીર્થોનો સચિત્ર परन्त हमारे देश में तो नमक पर भी कर है जिसके विना तितास" प्रेसमा ७० २३ ७. मा पुरत मारे गरीब व अमीर दोनों ही जीवन निर्वाह नहीं कर सकते। allor शव भने pin पुस्ता सपना थानु इसी नमक के कर ने फ्रांस में विप्लव मचा दिया या। तथा तेभ शिक्षामा भेगका माटतेमा धारे समय साल महात्मा गांधी ने भी अपने ऐतिकासिक आन्दोलन में, इसको । ગm પરંતુ હવે તેને માટે લગભગ મળતી સામગ્રી તૈયાર થઈ ગયેલ હોવાથી થોડા સમયમાં બહાર પાડવાની આશા રાખવામાં प्रथम स्थान दिया है। भाव छ. अब हम दूसरे प्रश्न पर विचार कर इस लेख को मारनामे 20GAL આ પુસ્તકના જેઓ અગાઉથી ગ્રાહકો થયા છે તેમના समाप्त करेंगे। जैसा कि उपर लिखा गया है हमारा दुसरा तया गावाजीरनी २५1 समोरी : - प्रश्न है-कर को इकटे करते वक्त किन २ बातों को ध्यान सभा ' - સમાં જમાં રાખવામાં આવેલ છે તે માટે જે ગ્રાહકને ઉતાવળ છે તેઓ પોતાની રકમ આપેલ પહોંચ પાછી આપી में रखना आवश्यक है । ये हम नीचे क्रमश: देते है। ડીપોઝીટ લઈ શકે છે.. (१) जितना कर किसी आदमी से लेना हो उसकी पुस्तक तैयार याथा आनि म सुय। माशु: संख्या पहिले से ही बता देना चाहिये। यह नहीं होना ता. २४-२-३२ ली. चाहिए कि बिना उसके बताये ही एकदम मन में आया નાથાલાલ છગનલાલ શાહ वही कर उससे मांगने लगे। (२) कर देने का समय, स्थान, पहिले से ही निश्चित स्वीजर अन समादायना. होना जरूरी है। ये बात तमाम सर्व साधारण को जतानी શ્રી મહાવીર જૈન વિદ્યાલયને સળગે વાર્ષિક अत्यन्त आवश्यक है। પિટ વિ. સં. ૧૯૮૬-૮૭ પ્રકાશક-શ્રી મોતીચંદગિ કાપડીઆ, (३) कर उसी समय अदा करनी चाहिये जब लोगा शोचालीमा विद्यास, भुप४ ७. को देने में विशेष कष्ट न हो। रियाया के सुभोते अनुसार આ સંસ્થાને ગત વર્ષોમાં જુદી જુદી દિશાઓમાં समय को ही कर अदा करने का निश्चित समय बनाना चाहिये। सारी प्रति १. म पुरता मा नया. पोट पडे (४) कर अदा करने में जहाँ तक हो कम से कम खर्च छेते ५२वा 3meी प्रिय श्रीमत मधुमे। ११२५ पान हो। यह नहीं कि आफिसरों की जेबें भर जावे और गरीब s, ન આપે એમ ઈચ્છીશું. –શ્રી યશવૃદ્ધિ જૈન બાલાશ્રમ મહુવાને સ. ૧૯૮૩ जनता के फायदा के लिए कुछ भी नहीं बेचे। था ८७ सुधाना पाट. (ओशवाल नवयुगसे उधृत.) -–દક્ષિણ મહારાષ્ટ્ર જૈન શ્વેતાંબર બડગ સાંગલીश्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल पञ्जाब. स. १६८६ था ८७ सुधीना रिपाट. १६ था १८ निवा इस संस्थाका वार्षिकोत्सक ता.२५-२६-२७ मार्च छात्रामा विद्यार्थी पा७मासि सरेशस गर्य રૂ. ૧૫-૧૬ સંસ્થાને પડે છે. દક્ષિણ મહારાષ્ટ્રમાં આ સંસ્થા १९३२ तदनुसार मिति चैत्र बदी ३-४-५ शुक्र, शनि, "अशी छे. रविवार को गुरुकुल भवन में शिक्षा प्रेमी श्रीयुत बाबू बहा ઓશવાલ નવયુવક સંમેલનदुरसिंह जी सिंधी रईस कलकत्ता के सभापतित्व में होना આવતા મે માસની તા. ૨૧-૨૨ ના રોજ સુનનગઢ निश्चित हुआ है। ( २) भांगशवास नवयुवः सभेसन भगानुछे.
SR No.536272
Book TitleJain Yug 1932
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal N Mankad
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1932
Total Pages184
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size13 MB
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