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________________ (२२) भगवानर १८० - जैन युग - ता. ११-१२-२ ३॥०॥नबपद पुजामें आरतीके ॥ सामानके (१८) यात्रीयोंसे दूध केसर भगवानका नित्य चढानेके. ३।०॥ लाजमी लिये जाते है. बहाने कुछ मासिक या वार्षिक लिखाते है करते ५||- निन्नान्वे प्रकारी पुजामें आरती के ०॥ कराते कुछ नहि पर यात्री दुवारा आताह तब सामानके ५/- लाजमी लिये जाते है. उसीके हस्ताक्षर दिखा हिसाब जोड करजेकी ६॥ बारा वृतकी पुजामें आरतीके ॥सामानके भान्ति वमुल करते है. ६) लाजमी सिये जाते है. (१९) धुत्तेवाग्राम महाराणाकी तर्फस भंडारको भेट हुवा ९)= वीस स्थानककी पुजामें आरती १) है उसकी जमीन किसी गेर काशतकारको दी जा ___सामानके ८)= लाजमी लिये जाते हैं. तो पैदा बारका आधा भंडारको आता है पर पन्डे १२॥ चौवीस जिनराजकी पुजामें आरती १ लोग चौथाइ भंडारको देते है. सामानके ११॥ लाजमी लिये जाते है. (२०) जो आसपासके गामा में महाजन और भील रहते (८) यात्री लोग जितने अंगणे चढाते है सब पन्डे है उनसे फसलाना (सुखडी) का नाज ले आते है. ले जाते है भगवान वास्ते जुदा भन्डारसे मिलते हैं. जो यात्री अंगी कराते है उससे १) एक रुपया (९) स्वार्थवस थोडे अरसेसे यात्रीयोंको आसका देने आरतीमें रखाते हैं वो भी पन्डे ले जाते है. लगे है वो इस प्रकास्के पुजन करके बाहर भगवान पर जो निछरावल होती है वो भी पन्डे निकले तब खोवीमें फूल पन्डे देते है और दान ले जाते है. मांगते है जो देते है सो लेते है. (२३) महाराणा उदयपुरके जन्मदिन धुलेवा ग्रामसे (१०) धजा नशान सलमे वोजरीके सभी पुराने होने पर आसका (केसरका रंगारुमाल्ल लेकर) आते है और यही ले जाते है एक यात्रीने आज चढाया एक १००) रुपया स्टेटसे ले जाते है. ने कल तो पहले दिन वाला पुराना समझ पन्डे । (२४) भील टेहेल जो सेवा करने आते है उनसे अपना ले जाते है. हक बता जबरन १) एक रुपया ले लेते है. (११) यात्री भगवानकी १०८ या ९९ परिकम्मा देता (२५) वरघोडे नीकलने पर इन लोगो को फरदन फरदन है तो उतनेही नारियल चढाता है सब पन्डे (जुदा जुदा) इनाम मिलता है. ले जाते है. (२६) पुजन पक्षालको बोलीमें पहले कुछ नही लेते थे (१२) यात्री नैवेद्यकी थाली चढातें है सो भी पन्डे बादमें १) लेते अब कुल आमदनी लेने लगे है. पुजारी ले जाते है. (२७) भंडारके दुसरे खाते रसीद बुकमें जो आता है यात्री अपने बच्चोंको गुड सक्लरसे तोलते है उसमें भी ३५) सेकड़ा मांगनेवास्ते दरखास्त दी है वो सामान भी पन्डे ले जाते हैं. तिर्थ सरकारी इन्तजाममें है इस वास्ते यात्री कोई थोडेमें कर (१४) गाय भैस भगवानकी पक्षाल वास्ते आवे सो भी नहीं सकता जिस वातका जो लागा पहलेसे बंधाचला आता है पन्डे ले जाते है. उस माफक काम होता है इस वास्ते तीर्थ जानेवाले भाइयोक उपरोक्त जिन बातोंका करना उनके अधिकारमें है सब बन्द (१५) धुलेवग्राममें किसी भी महाजनकी मृत्यु होवे तो कर दें रसीद बुकमें पाइ न भरे यदि समस्त भाइ इस प्रकार करीब २०) २५) रुपये का सामान मन्दरमें वर्ताव करें तो तीर्यका सुधारा शीन्न होनेकी आशा है, कृपा आता है सब पन्डे ले जाते हैं. कर सब नगरवालें अपने अपने ग्रामोंमें ठहराव कर, साधु (१६) यात्री लोग भगवानके दर्शन न करे तबतक मनीराज सब लोगोको जहां जावे इसी प्रकार नियम कगर्वे, अमुक वस्तुका त्याग करते है उसको आरवड़ी तो शीघ्र साफल्यता की आशा हैं. बोलतें है उसके खोलने पर जो आता है सो पन्डे ले जाते है. यात्री, अभयकुमार, (१७) यात्रीयोंसे रवानगी के समय यजमान कह कर विदा लेते है.
SR No.536272
Book TitleJain Yug 1932
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal N Mankad
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1932
Total Pages184
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size13 MB
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