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________________ al. १५-७-३२ - युग - ૧૦૯ (अनुसंधान पृ. १०४ ५२41.) (अनुसंधान पृ. ११० परसें.) त्रयी मा . सोन ३. १०००)नी ३१.५८-४-. बालकों को मूंडने की आवश्यक्ता क्यों हुई? किन सेम कथा. सारा नानी, प्रा. सोन ३. १७५००)नी धार्मिक कार्यों में उनकी सहायता ली जाती है और समाज ३१.१८-१५-० सेमेथी . की क्या उन्नति वे कर सक्ते हैं? कुछ नहीं, ज्यादा से ज्यादा याराना सी माई माने पट दर यि किया तो सामायिक प्रतिक्रमण जौर इस से ज्यादा किया तो ३. १....)नी ३. ७०-८-. या संस्कृत के एकाध रूप । वर्षों तक यही रटन्ट । दीक्षा के सा। थार जानी. प्रा. सोन ३.५००) नी ३१. ८६.०.. से. लिये हजारों रुपये समाज के खर्च कराये कोर्ट में मुकदमा ઉપરની સિકયુરિટીઓ વેચતા જે ઉત્પન્ન આવા તેમાંથી - बाजी की, फिर भी परिणाम क्या-पहाड़ खोदा और चूहा ३. १०...) या औद-बीमारीस- निकला । पर यहां तो हमारे बाल-दीक्षा के हिमायतियों का માં ફિકસ્ડ ડિપોઝિટ ૧૨ માસની ૪% લેખે. कुछ दूसरा ही उद्देश्य मालूम होता है। सो क्या-उनकी ३. ५०००) धासेंदश मे मा हरामा बी.ई. ઓફીસમાં ક્રિકટ ડિપાઝિટ ૧૨ માસની ૫% લેખે તથા सेवा करने वाले चाहिये-उनके हाथ पैर चांपने वाले ३१. ३७७५) शागत भितना ना ३, ५०००)नी चाहिये-उनका बोझा उठाने वाला चाहिये। मतलब यह कि इसवेल्युना पा२८१ ३२॥ साटमा २१४११मा मावेन छ. उनकी हाजिरी में हमेशा एक न एक रहे और उनके कार्यों शे मे सो तथा २५ बि युनियामां को पूरा करता रहे उधर उन वेचारे बालक-साधुओकी दशा 240यास २ता पूरवाणा विधार्थी भी. र मेहताने निहारिये। यदि को हुआ होशियार और चतुर तब तो पंजे या (९) मा अभ्यासनी भ६६ मारे ३.. २०.) मसो - में से निकल कर नौ दो ग्यारह हुआ और बाकी के वेचारे આપવા ઉદારતા દેખાડી છે. મજકુર વિદ્યાર્થીને ગયે વર્ષે श:श्री तथा सभारी ममामाने भान भाषा ३. २०.) नक का यातनाआ का भागत हुए अपना जीवनयात्रा को असे मापामा माव्या लता. १५२ मत मेम. मे. (प्रथम पूरी करते है, कभी गुरु जी के डंडे के प्रहार सहन करते हैं, वर्ष) मा परे नगरे तथा मेस. मेख भी भा यम व मां तो कभी वाणी की खरधार। कमी उनके क्रोध के शिकार उत्तीतजा भाटे ५२ grant भु YOr म भ६ बनते हैं तो कमी उनकी अन्य बातो के शिकार । नो मी ती अग बानो ने शित મંજૂર કરવામાં આવી છે જેને પહેલે દફતો વિદ્યાર્થી મજકુરને મોકલી આપવામાં આવ્યો છે, ऐसे मुनिवरो ! आपका सम्मान, परम सुधारक भगवान मसान न-श्री शिक्षा प्रेमय भी यो महावीर के वेष का सम्मान जैन समाज बराबर करता अभावामां आ AM५ प्रेमी धु भने घास- आरहाहै । अब यदि आप अपनी कुचालां को न छोड़कर, शाली तरी ती येतात तेमना भी निमारी साध-जीवन के महत्व को न समझ कर केवल भेड़-बकપછી દેહોત્સર્ગ થયાના દુઃખદ સમાચાર સાંભળી તેમના અવ रियों की संख्या बढ़ाने में ही अपने साधुत्व की इतिश्री कर માનની સખેદ નોંધ લઈએ છીએ. મહુમ સાહિત્યના વિષયમાં भूण २ लेता बापत सभालना पायमा दोगे, तो आपका आदर-सम्मान-उन परम परमेश्वर भगवान नेगाना ना सुंबर बतातेमाश्री मासस्थानी २2- महावीर के वेष का सम्मान-संसार के इतर बाबाओं से मिटिना माया मानेना स०५ ता भने शह माय विशेष न रहेगा। आपका सम्मान आपके हाथ में है। अब यानी पटीना मे वहीवार प्राताना पण ता. जागत होने का समय है। અમે મહુંમના આત્માને શાંતિ ઇચ્છીએ છીએ. प्यारे समाज ! तू अपनी आंखों देख रहा है कि तेरी नायेन पुस्तके वेयाता भणशे ही सम्पति और नाम पर खेलने वाले उन साधुओं का क्या हाल हो रहा है जो नन्हे नन्हे बच्चों के, जिनके अभी खेल શ્રી ન્યાયાવતાર ३. १-८-० कूद के दिन भी पूरे नहीं हुए, जीवन को दीक्षा की आड़ જેન ડીરેકટરી ભાગ ૧ લે ३. ०-८-० नी२४टरी माग १-२ ३.१-०-० में कुचल रहे हैं। प्यारे समाज ! यदि इस बीसवीं सदी में જેન વેતામ્બર મંદિરાવળી ३.०-१२-०१ भी तू इतना पीछे रहा तो इतिहासकारों से तुझ पर असજૈન ગ્રંથાવળી ३. १-८-08 भ्यता और कलंक का टीका लगाये बिना न रहा जायगा। न २ विमा (प्र. भाग) ३. ५-०-०१ तेरा कर्तव्य है कि उठ और भगवान महावीर के वेष सम्मान " , " साग भील ३.. 3-०-० १ की रक्षा करके अपने आपको रसातल में जाने से बचा! લખે:-શ્રી જૈન વેતામ્બર કોન્ફરન્સ. - २०, पायधुनी, भु .. _ (अग्रलेख, श्वेतांबर जैन. ३०-६-३२) areAN00000 wwwsaxo000 ना
SR No.536272
Book TitleJain Yug 1932
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal N Mankad
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1932
Total Pages184
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size13 MB
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