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________________ जैन युग. 卐 वीर संवत् २४५७. हिन्दी विभाग. ता. १५-६-३१. आर जैन धर्म और केशर. केशर * शब्दका प्राचीन ग्रंथो में भले ही नाम (गतांक ९ से आगे.) मिलता हो, परन्तु उससे कोई यह सिद्ध नहीं कर सकता मूल सूत्र में जिनेन्द्र देवपर चढाने योग्य बहतसे कि यदि अपवित्र और अशुद्ध केशर मिलती हो तोभी उससे सुगन्धित पदार्थों के नाम हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि हम पूजन करना युक्त है। यह आग्रह नहीं कर सकते कि पूजन में केशरही चढाया जाय। पूर्वोक्त बातों से यह तो निश्चितही है कि यह अब बात यह है कि उन सामग्रियों मे भी केशरका आग्रह नहीं किया जासकता कि केशरही चढाना चाहिये । नाम कहीं है वा नहीं? यह बात उन सूत्रों के पाठ उद्धृत अब बात यह है कि यदि केशर चढाया जाय तो करने परही बिचारी जा सकती है। तो भी इतना निश्चित हा सा और न चढ़ाया जाय तो और क्या चढाया जाय । है कि केशर चढानाही चाहिए यह उल्लेख नहीं पाया जाता। प्राचीन आचार्य कृत ग्रन्थों में से श्री उमास्वाति इन दोनों प्रश्नोका उत्तर वर्तमान अवस्था को देख कृत x (जो लगभग ८ वीं शताब्दि में हुए हैं ) " पूजा करही दिया जासकता है, इसके लिये अतीतकालकी कोई प्रकरण" खास पूजन विधि आदि के संबन्ध में है, परन्तु बात बाधक नहीं हो सकती । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावानुसार उस ग्रन्थ के भी पास न होनेसे उसके आधार पर विशेष परिवर्तन होते आये हैं और होते चले जायंगे। भले ही नहीं लिख सकता। ___शास्त्रों मे पूर्वकाल केशरका विधान मिले, पर यदि हमें शुद्ध अर्वाचीन ग्रन्थों के विषय में यह कहा जासकता केशर नहीं मिलता हो तो उसका हम कदापि इस्तमाल न करें। है कि प्रायः सभीने केशर शब्दका उपयोग किया है, और हम जानते हैं कि पूजाओंमे हम कस्तूरी जैसे आजकल नई बनाइ जानेवाली पूजाओं के पाठों में केशर शब्दका प्रयोग बहुतायत से पाया जाता है। परन्तु इन शब्दोंका प्रयोग करते हैं, तोभी कहीं कस्तूरी चढाई जाती पूजाओं के रचयिताओं पर हमारी आधनिक प्रणालीकी मी हा एसा नहीं देखा गया। अधिक छाप है, जिसके कारण उनका ऐसी वस्तुओंका यह तो मानना पडेगा कि आज कल केशर मिलता समावेश करना एक स्वभाविक बात है। यह छाप इतनी अवश्य है परन्तु संशय इस बातका है कि वह शुद्ध है प्रबल है कि वह विचार के लिए कोई स्थान ही नहीं रखती। या अशुद्ध ! आज कल प्रायः यह दखा जाता है कि कइ आज कल चारों ओर से यही अवाज सुनाई देती व्यक्ति मात्र चंदन चढाते हुए भी मुंह से उच्चारण करते हैं, है कि केशर शुद्ध मिलता ही नहीं। ऐसे संयोगो में बजारमे "केशर चंदन यजामहे स्वाहा." यह क्या है ? सब वाता- बिकने वाली केशर की शुद्धता-अशुद्धता का कोई प्रमाण वरण की प्रबल छाप जो कि हमें यह नहीं सोचने देती कि जबतक नहीं मिले तबतक उसे चढानेका हमें अधिकार नहीं हम क्या कह रहे हैं और क्या कर रहे है। हो सकता। ६ अर्वाचीन ग्रथों मे यह भी शंका हो सकती है कि (अनुसंधान पृष्ट ९५ उपर) उनमें नई नई वस्तुओं के लिए नये नये नाम समावेशित किये हों, इस लिए हमको प्रमाग ग्रन्थ मानना और उनसे * प्राचीन और अर्वाचीन ग्रंथो में केशरके अर्थ केशर पूजाका होना सिद्ध करना खटकनेवाली बात है। में कुंकुम, और काश्मीरज शब्दका प्रयोग होता दिखाई हां! यह सबको मानना होगा कि अच्छी चीजको देता है। तंत्री:-जैन युग. ग्रहण करना और बुरी चीजको छोडना हमारे कर्तव्य और Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain विवेकपर ही अवलम्बित है। Bhaskaroday P. Press, Dhunji Street, Bombay नोट:- x कितनेही ऐतिहासज्ञों के मतसे उमास्वातिजी - and published by Harilal N. Mankar for Shri Jain Swetamber Conference at 20 पहेली शताब्दि मे हुए है। तंत्री:-जैन युग. Pydhoni, Bombay 3. लेशित ....
SR No.536271
Book TitleJain Yug 1931
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal N Mankad
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1931
Total Pages176
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size12 MB
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