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________________ ૪૯૮ हत्याअंड गोड साथ भिलार यह अभानुषि રાજ્યકી પુલીસકારા કરવાયા થા. પ્રકાશક. ’ જૈનયુગ જ્યેષ્ઠ ૧૯૮૩ इस समय दिगम्बरों को चाहिये कि वे पालीताना की यात्रा का मार्ग अवश्य खोल दें.. . दिगम्बरों को वहाँ पर एक मेला भी करना चाहिये । यह अवसर दिगम्बरों को हाथ से नहीं जाने देना चाहिये ।” આથી જે અમે જણાવ્યું છે તેને પુષ્ટી મળે છે. હવે વાત કઇક જૂદી સ્થિતિ પર આવતી જાય છે, દિગંબરી ભાઇઓએ શ્વેતાંબર ભાઇએના પર સામુદાયે ક:ઢેલા વાંક અને આરેાપા ખાટા પડે છે परंतु पोताना शुं वां होष थया ने ने ॐ અન્યું તેમાં કઈ પેાતાના દોષ તે બનવામાં નિમિ ત્તભૂત હાય તે। શું હતા તેના તા કઇં પણ ઉલ્લેખ ज्यां उरवामां आवतो नथी. 'मे हाथ वगर ताड़ी पडती नथी' सेभ तटस्थ सोडा स्टेटना मोरीस રાના કાર્યના વિચાર કરતાં જરૂર માત્તેજ. દિગ’મરી ભાઇઓએ જે બખાળા શ્વેતાંબરા સામે કાઢયા છે તે અયેાગ્ય, અતિશયેાતિ પૂર્ણ અને सु३थिहीन छे सेभ भोने सागे छे. 'खासु भेोधुं छे भेटले विशेषभां शत्रुंनयनी यात्रानो त्याग श्वे - तां रेशो यछे भेटले तेमनाथी वि३६ ४४ पो દિગ’ખરીએએ ત્યાં જરૂર જવું, હડતાલ પાડવી. મી, મુનશી કમિટીમાં રાજીનામું આપી દીધું, અને પછી તિરસ્કાર બતાવવે। આ વગેરે કેટલાક દિગ ખરભા भ्यानां नृत्य। अभने तो अनिष्ट भनोदशा सुरावे છે. આ ભામ્રઓને તેમનાજ સંપ્રદાયના જૈન જગતૂ'ના સ’પાદક જે જણાવે છે. તેના અમે હવાલે खापरमे छामे:-- 66 हम जैनगज़ट के संपादक महाशय की उपरोक्त राय से बिलकुल सहमत नहीं हैं । यद्यपि हम मानते है कि श्री ऋषभदेव हत्याकाण्ड के सम्बन्ध में वैता गत तारीख ८ जुलाई के जैनगज़ट में संपादकीय अग्रलेखमें “श्वेताम्बरों के अत्याचारों के उत्तर स्वरूप हमें (दिगम्बरों को) पालीताना अवश्य जाना चाहिये” ऐसी सलाह दी गई है। धर्मचंदजी जैन नामक किसी दिगम्बर भाईने एक मुद्रित लेख गज़ट को भेजा था, जो स्थानाभाव से गज़ट के उपरोक्त अंक में प्रकाशित नहीं हो सका, परन्तु गज़ट के विद्वान् संपादक महाशय ने उस लेख का हृदय से अनुमोदन करते हुये लिखा हैं कि 'श्वेताम्बरों के साथ किये जाने वाले उपकार को दिगम्बरों की हम बुद्धिमत्ता नहीं समझते....... म्बर जैनसमाजने अपना कर्तव्यपालन नहीं किया हैं, प्रत्युत जानकारी से या बिना जानकारी के उसकी ओर से हत्याकाण्ड के बाद में भी ऐसी २ कार्रवाइयाँ की गई हैं और ऐसे प्रस्ताव पास किये गये हैं कि जिन्हें देख कर महान् दुःख हुये बिना नहीं रह सकता और जिनको देखते हुये यदि दिगम्बर समाज में श्वेताम्बर समाज के प्रति अधिकाधिक क्षोभ फैले तो कुछ आश्चर्य नहीं. किन्तु इतना सब होने पर भी जो राय जैनगज़ट ने दी है, उसे हम बिना पूरे सोच विचार के दी हुई और समाज के लिए बहुत हानिप्रद समझते | लोकमत के प्रवाह को समाचार पत्र ही नियंत्रण किया करते हैं अतः पत्र सम्पादकों से यही आशा की जाती है कि वे अपने आपको क्षुद्र साम्प्रदायिकता, अनुदारता, आदि अवगुणों से बचाकर हृदय की विशालता व गम्भीरता प्रदर्शन करें। यदि वास्तव में देखा जावे तो शत्रुंजय के सम्बन्ध में पालीताना दरबार के साथ जो झगड़ा अपना नाक कटा कर दूसरे का अपशकुन केवल श्वेताम्बरों के साथ का ही नहीं है। इस झगड़े करना ठीक नहीं । का मुख्य प्रश्न यह है कि क्या एक रिसायत को यात्रियों करने का अधिकार है? इसी कारण केवल दिगम्बर पर इस प्रकार कर लगा कर धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप अथवा श्वेताम्बर ही नहीं, वरन समस्त अजैनों की सहानुभूति भी जैनियों के साथ है । पालीताना दरबार ने जो यात्री कर मुकर्रर किया है, वह केवल श्वेताम्बर समाज पर ही नहीं, दिगम्बरों पर भी किया है। दिगम्बर समाज जो पालीताना दरबार के खिलाफ खड़ा हुवा है और लड़ रहा है, वह श्वेताम्बर समाज के साथ सहानुभूति या उसकी सहायता के लिये नहीं, बल्कि इसलिये कि पालीताना दरबार के लगाये हुये -
SR No.536269
Book TitleJain Yug 1926 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1926
Total Pages54
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size5 MB
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