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हैं । विद्यार्थी में उच्च आदर्श, आचार, विचार, नैतिक स्तर लुप्त हो गया है। आज के ये नवयुवक तपस्वी विशिष्ट की अपेक्षा राजसी ठाटवाले दशरथ बनने की चेष्टा करते हैं। शिक्षा में भ्रष्टाचार नस-नस में फैल गया है। मानो पैसे के बिना कोई कार्य सम्पन्न नहीं होता । आज शिक्षा और उसकी अवस्था इतनी बिगड़ी हुई है, की उसको सुधारना नामुमकीन है ।
कालिदास के समय के आचार्योनें ऐसी धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था की रचना की थी, जो समाज को सुदृढ ढाँचे में ढाल सके और उसे सुरक्षित रख सके । इन नवीन व्यवस्थाओं को प्रामाणिक मान्यता प्रदान करने के लिए श्रुति (वेद) को आधृत किया है । मनुस्मृति नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ में सोलह संस्कार, व्यवहार, अपराध का निर्णय आदि नियम राजा के पालन के लिए बनाये गये हैं, और प्रजा को भी इन नियमों से बांध दिया जाता था । अतः राजा को वर्णाश्रमधर्म का रक्षक तथा ईश्वर का प्रतिनिधि कहा गया है । रघुवंश में शम्बूक तपस्या कर रहा था ऐसा उल्लेख है, किन्तु उस समय
करने का अधिकार न था । कालिदास शैबधर्मी था उसका उल्लेख केनोपनिषद की हैमवती उमा में है। उसने पौराणिक कृष्ण, वामन विष्णु तथा ब्रह्मा तीनों को एक ही परमशक्ति के तीन रूप माने हैं। परमात्मा की आराधना के विध-विध प्रकार और उनके प्रतिपादक शास्त्रों को भी आदर की दृष्टि से देखा जाता था । उस समय का समाज भी काफी उदार था । मनु ने असवर्ण विवाहों को वैध माना हैं । तत्कालिन व्यवहारों, मान्यताओं और कला आदि ने भारतीय संस्कृति के निर्माण तथा विकास में अच्छा योगदान दिया है।
कालिदास के संदर्भ में आज की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था बहुत बिगड़ी हुई है । समाज में दंभ, भ्रष्टाचार, शोषण के कारण स्त्रीयों की दयनीय स्थिति है । बलात्कार, अपहरण जैसे किस्से हररोज होते रहते हैं । सामाजिक स्तर निम्न कक्षा का हो गया है । धार्मिक दंभ बढ़ गया हैं । अपने को धर्मगुरु कहलानेवाले धार्मिक गुरु अरबों की संपत्ति अपने नीचे दबाये बैठे हैं। प्रजा ने परमात्मा को आधुनिक स्वरूप दे दिया है। नैतिक मूल्यो का अध:पतन हो गया है, प्रजा निर्माल्य बनती जा रही है। राजनैतिक व्यवस्था नाम:शेष हो गई हैं, तथा राजनैतिक अपराधीकरण बढ़ गया प्रजा आर्थिक उपार्जन में पड़ी हैं, प्रजा में हिंसा, अपराध, भ्रष्टाचार का भाव बढ़ गया है । समाज में मनुस्मृति
की वर्णव्यवस्था बिलकुल नष्ट हो गई हैं । प्रजा का रक्षण करनेवाला कोई नहीं है, और जो प्रजा के रक्षक हैं, वो ही भक्षक बन जाते हैं। समाज में से वैवाहिक पद्धतियाँ नष्ट हो गई हैं । आधुनिक संस्कृति के विकास ने सुव्यवहारों, मान्यताओं, कला आदि को निर्मूलन कर दिया हैं ।
कालिदास के समय में अहिंसा की भावना बहुत अच्छी थी, यह उसके काव्यों में दिखाई पडती है। गन्धर्व ने राजा अज को संमोहन नामक अस्त्र दिया, जो बिना हिंसा किये शत्रुओं को पराजित करनेवाला था । अज ने अपने शत्रुओं पर उस अस्त्र का प्रयोग कर उन्हें हरा दिया, किन्तु उन्हें मारा नहीं । मनु ने शिकार को व्यसन कहकर उसका निषेध किया हैं । कालिदास ने दशरथ के उस शिकार खेलने की निन्दा की है, जिसमें उसके हाथों श्रवणकुमार का वध हो गया था । 'अभिज्ञानशाकुन्तल' में भी माधव के मुख से कवि ने शिकार करना बुरा ठहराया है । शाकुन्तल में यज्ञ में पशु मारनेवाले क्षेत्रिय ब्राह्मण
सामीप्य : मोटो. २००६-भार्थ, २००७
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