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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मा, गणेश, इन्द्र, यम, वरुण, अग्नि, नैर्ऋत, वायु आदि दिक्पाल तथा प्रभामण्डल के घेरे में रुद्रमुख-पंक्ति भी बतायी गयी थी । विष्णु के पैर अपने हाथों में लिए पृथिवी, पार्श्व में भूदेवी और श्रीदेवी, अर्जुन आदि भी उकेरे गये थे । कालान्तर में ऐसी अनेक मूर्तियाँ गढी गयी थीं। विश्वरूप विष्णु की इस साहित्य और शिल्पगत पृष्ठभूमि के अनन्तर अब हम नेपाल में पायी जाने वाली विष्णु के विश्वरूप की उस प्रतिमा का वर्णन उपस्थित करते हैं जो न केवल शिल्प-सौंदर्य की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं अपित अपनी अनेक विशिष्टताओं के कारण अनठी है, निराली है। विश्वरूप-विष्णु की यह मनोज्ञ प्रतिमा नेपाल की बागमती घाटीमें भक्तपुर से लगभग तीन कि.मी. उत्तर में स्थित चाँगूनारायण मन्दिर के प्रांगण में रक्खी है। इस स्थिति की जानकारी तथा इसका चित्र श्री रत्नचन्द्र अग्रवालने ललितकला (नई दिल्ली) के १६ वें अंक में प्रकाशित किया है तथा भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के भूतपूर्व निदेशक और वास्तुकला एवं मूर्तिकला के विश्वववंद्य विद्वान प्रो. कृष्णदेव ने इस मूर्ति का विस्तृत विवेचन अपनी पुस्तक 'इमेजेज़ ओफ नेपाल' (नई दिल्ली, १९८४) में प्रस्तुत किया है। ८ वीं शती इ. में निर्मित इस प्रतिमा का उपरी भाग गोल है जिसका बाँया भाग उपर से लेकर मध्य भाग तक खण्डित है। प्रतिमा में सबसे नीचे शेष-शय्या पर लेटे हुए अनंत-विष्णु का अंकन है। प्रो. कृष्णदेव ने इस प्रतिमा की पहचान संकर्षण से की है क्योंकि उनके सामान्य दाएँ हाथ में मुसल है और अतिरिक्त बाएँ हाथ में दोहरे मकरमुखशीर्ष वाला हल है। संकर्षण भी तो विष्णु के दशावतारों में एक थे। विष्णुधर्मोत्तरपुराण (३/६५/१) में उन्हें विष्णु के अपरिमित बल तथा पृथिवी धारण करने वाले शेष बताया गया है - विष्णोरमितवीर्यस्य शेषस्य धरणीभृतः । मुसल इस प्रतिमा-फलक में एक विभाजन रेखा सदृश है। उसके उपर विश्वरूप विष्णु की प्रधान मूर्ति के चरण-युगल पृथिवी अपने करतल पर लिए खडी है और उनके अगल-बगल चरणों को सहारा देते एक-एक नागपुरुष हैं । इन नागपुरुषों के पृष्ठभाग में दोनों और दो-दो (कुल चार) गजमुख दिखायी देते हैं जो निश्चित रूप से चारों दिशाओं के प्रतीक दिग्गज हैं। इन दिग्गजों के माध्यम से इस प्रतिमा-फलक में विश्वरूप विष्णु का सर्वव्यापी विराट स्वरूप प्रदर्शित है । विश्वरूप के चार-चार करके तीन स्तरो में द्वादशमुख (दृष्टिगत केवल नौ मुख) और दश भुजाएँ हैं। उनके दाएँ हाथों में उपर से क्रमशः चक्र, बाण, खड्ग, दुधारी परशु तथा एक फल है, और बाएँ हाथोमें तद्वत् गदा, धनुष, गोल ढाल, दण्डयुक्त मयूरपंख तथा शंख है। उनके गले में ग्रैवेयक, वाम स्कंध से लटकता यज्ञोपवीत, उदरबन्ध, कटिबन्ध तता अपेक्षतया छोटी वनमाला है । नौ दृश्यमान मुखों में उपरी स्तर पर मध्य वाला एक मुख जटाधारी जान पड़ता है, शेष सभी मुखों के शीश पर किरीट मुकुट हैं । बीच वाले तीनों मुख स्मित मुद्रा में हैं । तीन स्तरों वाले इन मुखों के उपर बीच में एक आवक्ष मूर्ति भी खण्डित हो चुकी है। उसका केवल दायाँ हाथ ही बचा हैं । मुख तथा आयुधों के अभाव में इस मूति की पहचान संभव नहीं है। किन्तु अन्य विश्वरूप मूतियों के साक्ष्य के आलोक में यह मूति ब्रह्मा की होनी चाहिए, क्योंकि उसके दाहिने शिव विराजमान हैं और खण्डित बाएँ पार्श्व में विष्ण रहे होंगे। शिव प्रभामण्डल से अलंकृत हैं। वे चतुर्भुज हैं और पालथी मारकर बैठे हैं। उनके दोनों सामान्य हाथ आगे पैरों पर टिके हैं; अतिरिक्त दाएँ हाथ में अक्षमाला है और बाएँ मे त्रिशूल । शिव के दाएँ पार्श्व में एक चक्र बना है जो संभवतः सूर्यमण्डल का प्रतीक है। प्रो. कृष्णदेव का यह विचार सर्वथा सही जान पडता है कि बाएँ खण्डित अंश के इसी स्थान पर विष्णु के पार्श्व में चन्द्र रहा होगा । विश्वरूप विष्णु के दक्षिण पार्श्व में उपर शिव की मूर्ति तथा नीचे दिग्गजों की आकृतियों के बीच जो आकृतियाँ - [सामीप्य : ओटोबर, २०००-भार्थ, २००१ ४२] For Private and Personal Use Only
SR No.535817
Book TitleSamipya 2000 Vol 17 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhartiben Shelat, R T Savalia
PublisherBholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
Publication Year2000
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Samipya, & India
File Size8 MB
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