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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का आंशिक प्रभाव स्पष्ट है । ईंटों में भी ध्यानस्थ बुद्ध का अंकन २७ (चित्र ७) । देवनी मोरी के निकट पर्वत की तरफ समकालीन शैव स्मारक की पुष्टि करते शिव-लिंग प्राप्त हुए हैं हिन्दु मंदिरों (नवमी सदी ई.स., ) में रणछोड़ मंदिर (नवमी सदी ई.स.), तोरणयुक्त हरिश्चन्द्र नी चोरी- मंदि ( नवमी सदी ई. स.), प्राचीन सूर्य मंदिर व गदाधर मंदिर मुख्य हैं। रणछोड मंदिर मूलतः शैव मंदिर था । इसक प्राचीर से लगभग छठी सदी ई.स. की कलात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ एक नंदी, प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जो कि आजकल प्रिन्स ऑफ वेल्स संग्रहालय, मुंबई में संगृहीत । एक अन्य समकालीन नंदी (जो अपेक्षाकृत गौण है) हाल में शामलाजी संग्रहालय में संगृहीत है । यहाँ से दो आकर्षक शैव द्वारपाल प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं, जिसमें ए प्रिन्स ऑफ वेल्स संग्रहालय में व दूसरी त्रिलोकीनाथ मंदिर में है । संग्रहालय में संगृहीत उपरोक्त प्रतिमा के पी हिमालय पर्वत का अंकन है तथा वस्त्राभूषणों की कलात्मकता भी श्रेष्ठ है । यहाँ से प्राप्त सातवीं प्रतिमा सत् ई.स. की शिव-पार्वती (साथ में बालक कार्तिकेय) की प्रतिमा कलात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ है। शिवलिंग की कु दो प्रतिमाओं में से एक काशी विश्वेश्वर मंदिर में व दूसरी जो ५' ऊँची है हिम्मतनगर संग्रहालय में संगृही है । सौर संप्रदाय संबंधी अवशेषों में एक प्राचीन सूर्य मंदिर व एक सूर्य प्रतिमा मुख्य हैं। लगभग नौवी दसवीं सदी ई.स.का सूर्यमंदिर कालांतर में पुननिर्मित हुआ । मंदिर के गर्भगृह में अब सूर्य प्रतिमा नहीं है। गर्भगृ के भद्र खत्तक की संरचना कलात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ है। सूर्य प्रतिमा निकट स्थित गणेश मंदिर में स्थापित है वैष्णव संप्रदाय संबंधी अवशेषों में विश्वरूप विष्णु व गदाधर मंदिर प्रमुख हैं । विश्वरूप विष्णु प्र को स्थानीय लोग कलसी-छोकरांनी मां (कितने छोटे बच्चों की मां) नाम से जानते हैं। स्थानीय भील, रबा व अन्य लोग जिनमें खासकर स्त्रियाँ इसकी मातृदेवी के रूप में उपासना करते हैं । इसी प्रकार की एक अ अष्टभुजी प्रतिमा जो वीरासन मुद्रा में है हाल में बड़ौदा संग्रहालय में संगृहीत है । १५ वी सदी ई.स. में निम्ि गदाधर मंदिर में रामायण व श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित विभिन्न दृश्यों का सुंदर अंकन किया गया है। T उत्तर गुप्तकालीन प्रतिमाओं में गणेश की स्थानक - प्रतिमा, यशोदा (चायी तरफ गोद में बच्चा लिये र आकृति), तथा मातृकाओं में कौमारी, महेश्वरी ऐन्दरी, चामुंडा, वराही, अग्नेयी, वैष्णवी सुन्दर प्रतिमाएँ मुख्य है शामलाजी व आसपास स्थित स्मारकों के निर्माण में मुख्यतः ईंट, पत्थर, लकडी व लोहे की की का प्रयोग हुआ है । मेश्वो नदी की मिट्टी से ईंट तथा अरावली पर्वत का रेतीला पत्थर प्रयुक्त हुआ है । प्रश् सदी ई.स. में शामलाजी के लोग आभियांत्रिकी विद्या में निपुण थे तथा उन्हें लौहगलन विद्या की जानकारी ऐसा यहाँ के प्रायोगिक उत्खनन से ज्ञात हुआ । मृणफलक भी स्थानीय है क्योंकि इसके निर्माण के लिए आवश्य मिट्टी, पानी व आग के लिए टिम्बर उपलब्ध था । स्तूप के नीचे से प्राप्त अधजली बौद्ध प्रतिमाएँ तथा विि प्रकार के मेहराब इसकी पुष्टि करते हैं । एम्फोरा पात्र नागरा, वला, द्वारका, व सोमनाथ से भी प्राप्त हुए हैं जो नागरा एवं शामलाजी के ब मार्ग होने की संभावना प्रस्तुत करता है । कलावशेषों में मुख्यतः उत्तर क्षत्रपकाल के हैं तथा इनका उद् कुषाणकालीन गांधार एवं मथुरा कला से हुआ होगा । दो मूर्तियों के घुंघराले बाल व केश विन्यास तथा गां में प्रचलित अभिप्राय, जयपत्र व जैतून के अंकन से तथ्य की पुष्टि होती है कला संस्कृति का एक अंग है। संग्रहालय ही ऐसी जगह है जहाँ किसी व्यक्ति, स्थल एवं सम पथिङ • दीपोत्सवांड खोटो. नवे - डिसे. २००१ • ७५ For Private and Personal Use Only
SR No.535493
Book TitlePathik 2002 Vol 42 Ank 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhartiben Shelat, Subhash Bramhabhatt
PublisherMansingji Barad Smarak Trust
Publication Year2002
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Pathik, & India
File Size12 MB
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