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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शामलाजी संग्रहालय और गुजरात की सांस्कृतिक विरासत अतुल त्रिपाठी * भारत के पश्चिमी भाग पर २००१ से २४" ०७' उत्तरी अक्षांश तथा ६८ ०४' से ७४" ०४' पूर्वी रेखांश के मध्य स्थित गुजरात का कुल क्षेत्रफल १,९६,०२४ वर्ग किलोमीटर है। यह २५ जिलों में विभाजित है। वर्तमान में गुजरात में कुल ३९ संग्रहालय हैं जिनमें २३ व्यक्तिगत संस्थाएँ तथा १६ सरकारी हैं । इन १६ सरकारी संग्रहालयों में ११ गुजरात सरकार व ५ म्युनिसिपल से संबंधित हैं । लोथल ही एकमात्र ऐसा स्थल - संग्रहालय है, जो केन्द्र सरकार से संबद्ध है। प्राचीन काल में गुजरात मुख्यतः तीन भागों सौराष्ट्र- प्रायद्वीप, लाट (तापी और माही के मध्य का भाग) तथा आनर्त (उत्तरी गुजरात ) में विभाजित था । आनर्त्त यानि उत्तरी गुजरात स्थित शामलाजी साबरकांठा जिला अन्तर्गत भिलोडा तालुका से २० किलोमीटर दक्षिण पूर्व तथा दिल्ली जानेवाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-८ के दायें किनारे पर स्थित है । यह स्थल आज मुख्यतः वैष्णव धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है और ग्रंथों में इसकी चर्चा गदाधर क्षेत्र के रूप में हुई है ।" शामलाजी स्थित वर्तमान संग्रहालय २ मई १९९२ को उद्घाटित हुआ था, जिसमें मुख्यत: प्रागैतिहासिक पाषाण औजारों के साथ-साथ यहाँ से प्राप्त कुछ मुख्य मूर्तियों की प्रतिकृति व निकटवर्ती स्थलों से प्राप्त पूर्व मध्यकालीन एवं मध्यकालीन हिन्दू व जैन प्रतिमाएँ संग्रहित हैं। शामलाजी की तीन किलोमीटर परिधि में प्रागैतिहासिक काल से पन्द्रहवीं - सोलहवी सदी तक के अवशेष (कुछ अन्तराल को छोड़ ) प्राप्त हुए हैं । यहाँ से प्राप्त मुख्य प्रतिमाएँ हाल में प्रिन्स आफ वेल्स संग्रहालय, मुंबई व बडौदा संग्रहालय में संगृहीत हैं । कुछ अन्य मूर्तियाँ मोडासा संग्रहालय में भी संगृहीत हैं। दुर्भाग्यवश देवनी मोरी जैसा महत्त्वपूर्ण बौद्ध स्थल आज मेश्वो नदी पर श्याम सरोवर बाँध के निर्माण से पानी में डूब गया है 1 शामलाजी की भौगोलिक स्थिति, पर्याप्त संख्या में प्राप्त कलात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ शिल्प एवं स्थापत्य अवशेषो के आधार पर वर्तमान शोध-पत्र के माध्यम से मैं यह तर्क देना चाहता हूँ कि शामलाजी में वर्तमान संग्रहालय को एक समृद्ध पुरातात्त्विक स्थल संग्रहालय के रूप में विकसित करने की पूरी संभावना है जो कि गुजरात की सांस्कृतिक विरासत को समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है । विकसित पुरातात्त्विक स्थल संग्रहालय, वैष्णव धार्मिक स्थल तथा भौगोलिक स्थिति इस स्थल को पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने में सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं । गुजरात का वास्तविक राजनैतिक इतिहास मौर्यकाल से प्रारंभ होता है और विश्व के प्रथम संभावित संग्रहालय की प्राचीनता भी लगभग उसी समय यानि तृतीय सदी ई.पू. तक जाती है । मौर्य शासक अशोक ने अपने तेरहवें शिलालेख में सीमावर्ती राजाओं में तुरमय यानि मिस्र के यूनानी राजा द्वितीय यलेमी फिलाडेल्फस (२८५ - २४७ ई.पू.) का उल्लेख किया है जो प्रथम यलेमी (सोटर, ३२५ - २८५ ई. पू.) का उत्तराधिकारी था । प्रथम टालेमी, सिकंदर का निकट संबंधी एवं उत्तराधिकारी था, जिसने अलेक्जेंड्रिया में संभवत: विश्व के प्रथम विश्वविद्यालय अथवा संग्रहालय की स्थापना की थी। इस संस्था का उल्लेख Muscum अथवा Muses के घर ★ वरिष्ठ प्रवक्ता, इतिहास एवं संस्कृति विभाग, गूजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद-३८००१४ पथिङ • दीपोत्सवांड खोस्टो - नये. डिसे. २००१ • ७२ - For Private and Personal Use Only
SR No.535493
Book TitlePathik 2002 Vol 42 Ank 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhartiben Shelat, Subhash Bramhabhatt
PublisherMansingji Barad Smarak Trust
Publication Year2002
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Pathik, & India
File Size12 MB
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