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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) જૈિન ધર્મ પ્રકાશ [यैत्र-शाम केइ नर विणजे सोना रूपा, केइ विणजे जुठा सारा । 'आनंदघन' प्रभु तुमकुं विणज्या, जीत गया जुग सारा । क्. ४ (२) मना थांने किण विध ते समजाउं रे । जीया थाने० ॥ ए टेर ।। हाथी होय तो पकड़ मंगावं, झंझीर पांव नखावु । कर असवारी मावत होइ बैठे, अंकुस . दे समजाउं रे । मना १ घोड़ा होय तो पक- मंगावु, करड़ी बाग देहाउं । करी असवारी सखयां फेंकु, चाबुक दे समझाऊं रे । म. २ सोना होय तो सोनी मंगावं, करड़ा ताप देराउं ।। ले फुकण लागु, पाणी ज्युं पीगलाउं रे । म. ३ लोहा होय तो एरण मंगाड, दोय घमण से धमावु । मार घणा घमघोर लगावु, यंत्र में तार कढाउं । म. ४ ज्ञानी होय तो ज्ञान सिखावं, अंतर विणा बजावु । आनन्दधन कहे सुन भाई मनवा, ज्योत में ज्योत मिटाउं रे । ५ पद चरखेवाली और अंठियारो (३) सुण चरखेवाली तेरा चरखा बोले रे हु हु । सुण अंठीया वालीं तेरा अंठीया बोले रे हुहु ॥ ए टेक ॥ जल में जाया थल में उपना, बस गया नगर में आप । एक अचंमा ऐसा देखा, बेटी जाय चापरे । सु. १ बावल मेरा ब्याव करत है, अणजाण्या वर आप । अणजाण्या वर नहीं मीले तो, बेटी जाय: वापरे । सु. २ भाव भक्ति की रूई मंगाई, सुरत पीजावण चालो ।। ज्ञान पीजारा पीजवा बैटी, एकड तांत जणकाइ रे । सु. ३ सासु मरे जो नणंद मरे जो, परण्यो भी मर जाय ।। एक बडी मेरी नहीं मरे तो, चरखो दियो बताय रे । सु. ४ अंठ्या मेरा रंग रंगीला, पुणी है गुलजार । कातण वाली छलछबीली, गिण गिण काढ़े तारजी । सु. ५ इण अंठिया में...हु हु लखेन' कोइ, 'आनंदघन' या लखे विभूति, आवागमन न होय रे । सु ६ For Private And Personal Use Only
SR No.533949
Book TitleJain Dharm Prakash 1965 Pustak 081 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1965
Total Pages16
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size6 MB
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