________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Reg. No. G 50 की है। राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्टान का नाम दीपचन्द और माता का सौभागदे जोधपुर की प्रति नं. 17488 पत्र 1 की नकल था। इनका स्वयं के जन्म नाम दास था / आगे प्रस्तुत की जा रही है। युवावस्था प्राप्त होने परभी उन्होंने विवाह उपाध्याय विमल हर्ष सुप्रसिद्ध आचार्य नहीं किया और विजयदानसरि के पास दीक्षा हीरविजयसरि के समय के प्रसिद्ध विद्वानों में लेली। व्याकरण, आगम आदि ग्रन्थों के से है। संवत् 1638 में जय सम्राट अकबर अध्ययन के बाद हीरविजयसूरिने इन्हें वाचक से मिलने के लिये हीरविजयसूरि गम्बार से पद से विभूषित किया। अनेक स्थानों में फतेहपुर सीकरी के लिये रवाना हये थे तो विहार करते हुये आपने धर्म प्रचार किया। विमल हसपाध्याय को 35 साधुओं के साथ और उपाध्याय पद से विभूषित किये गये। पहले रवाना कर दिया था। जब सूरिजी प्रेमविजय आदि इनके शिष्य थे जिनके रचित सांगाणेर पधारे तव विमल हर्ष फतेहपुर पहुंच कई छोटी-मोटी रचनायें प्राप्त है। धर्मसागर गये / और सम्राट से मिलकर सूरिजी आ रहे की गुर्वावली के संशोधकों में भी आपका नाम हैं, इस की सूचना दी। सूरिजी के फतेहपुर है। इनके शिष्य जयविजयने संवत 1677 में कल्पसूत्र की कल्पदीपिका, नामक टीका बनाइ। पधारने पर वे सामने गये थे। और सम्राट से सुबोधिका और लोकप्रकाश का इन्होंने संशोधन मिलने के समय भी साथ थे। एक बार किया और आपके शिष्य उपाध्याय मुनि विमल सूरिजी खंभात थे तब अहमदाबाद में विमल के शिष्य भावविजयने सं. 1689 रोहिणीपुर हर्ष के साथ भदुवा श्रावक का विवाद हो में उत्तराध्ययन वृत्ति बनाई। भावविजयने गया था. इन सब बातों का उल्लेख मुनि विद्याविजयजी के सूरीश्वर और सम्राट नामक संवत 1679 में पत्रिंशत् जल्प विचार और सं. 1708 में चम्पकमाला कथा की रचना की। ग्रन्थ में पाया जाता है। ऐसे महत्त्वपूर्ण मुनि विमल हर्ष के दानचन्दने सं. 1708 में मौनके संबंध में उनके जन्मस्थान, जाति, माता- एकादशी कथा की रचना की। प्रेमविजय की पिता आदि का विवरण प्राप्त न होना अखरता कई रचनाओं का उल्लेख जैन गूर्जर कविओ था। प्रस्तुत भास के द्वारा उस कमी की कुछ ___ भाग 1-3 में मिलता है। उनमें से वस्तुपाल पूर्ति होती है। तेजपाल रास की प्रसरित में विमल हर्ष का विमल हर्ष भाष के अनुसार उनका जन्म, श्रीमालवंथू का और लोंकों को प्रतिमालवदेश के देवासनगर में हआ था। पिता बोधन देने का महत्त्वपूर्ण उल्लेख है। . उपा. विमलहर्षभास राग धन्याश्री / / दाल // तू जय तू जयो हीर पट्टोधरनी / श्री विमलहर्ष गुरु मोहन मूरति, दीठइ सुरनर मोहइजी / . (અનુસંધાન ટાઈટલ પેજ 2 જા ઉપર પ્રકાશક : દીપચંદ જીવણલાલ શાહ, શ્રી જૈન ધર્મ પ્રસારક સભા-ભાવનગર મુદ્રક : ગીરધરૂાલ ફુલચંદ શાહ, સાધના મુદ્રણુંલય–ભાવનગર For Private And Personal Use Only