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सहयोग
समाज के सम्मान्य सजन, समाज पर कुछ ध्यान दो। सब जन समाज के ही अंग है, निश्चय से इसको सानले ।।१।। इंजिन की सब ही सशनरी, बहु कार्य अपना कर रही। गर कुछ भी उस में न्युन हो तो, उसकी गति तो रुक रही।।२।। देह के भी अंग सब ही, कार्य नियमित कर रहे। गर शिथील कुछ अंग हो तो, अस्वस्थ उसको कर रहे ।। ३ ।। राष्ट्र संचालन में भी, सब जनयोग अपना दे रहे । जहां दोष उत्पन्न हो गया तो, कठिनाई आकर के रहे ॥ ४ ॥ पुज्य श्रमण और साध्वी, श्रावक तथा वह श्राविका । शाशन के सब ही अंग है, इस में न शंशय है कदा ॥ ५ ॥ अब करतव्य सब का हैय ही, सब को सब सहयोग दे । सव ही परस्पर एक है, असहयोग को फिर त्याग दे ॥६॥ जैनत्व द्रष्टि से सभी को, जैन ही तो मान ले। महाबीर की संतान है, इस दृष्टि से अपनाय ले ॥ ७ ॥ मैत्री भावों से सभी को, मित्रवत ही जान ले। प्रमोद, करूणा, माध्यस्थ से, मध्यस्थवृत्ति धार ले ॥ ८ ॥ शाशन रसिक सबको बनाना, ये ही ध्येय बनाय ले । विश्व यह विशाल है तो, हृदय भी विशाल, बनाय ले ॥९॥ विस्तरित अहिंसा वृक्ष जग में, जीसकी शीतल छांह से। शांति सब को प्रदान करना, सहयोग के आराध्य से ।।१०।। शाशन से हो गये थे पृथक, उन को भी अब अपनाय ले। . सरल सत्य सहृदयता से, 'राज' फिर सहयोग दे ॥११॥
-राजमल भण्डारी-आगर (मालवा),
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