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पाध्याय मेघविजय रचित चित्रकोश-विज्ञप्ति लेख
---अगरचंद नाहटा-बीकानेर जैनाचार्यों व उनके आशानुवर्ती मुनिगण में प्रकाशित किये गये है। अपशिष्ट इस, एवं भावकों द्वारा विज्ञातिलेख भेजने की प्रन्थ के अन्य भागमें प्रकाशित करनेकी योजना प्रणाली कापडी पुरानी है। है: सौ वर्ष पुराने है । पर वह सफल होगी या नहीं, कहा विज्ञप्तिले खतो आज भी प्राप्त है । इन विज्ञप्ति
नहीं जा सकता। पत्रों में चात्राविवरण रहता था, और अपने
१८ वीं शताब्दी में मेघविजय . उपाध्याय यहाँ के समाचार भी निवेदीत किये जाते संस्कृत के बहुत बड़े कवि तथा विद्वान हो थे। श्रावक संघकी ओर से आचार्यश्री योग हैं। ये संभवतः प्रतिवर्ष तत्कालीन अपने यहाँ पधारकर चातुर्मास करने की विज्ञप्ति आचार्यश्री को संस्कृत पद्यबद्ध विज्ञप्तिलेख भी रहती थी। पर्यषण आदि महापों की भेजते रहे हैं। इन में से 'मेघदूत समस्याधर्माराधना का वृतान्त भी इन पत्रों में लिखा पूर्तिभय' विज्ञप्तिपत्र और 'विजय देवसूरिविज्ञप्तिका' जाता था । माहित्य, काव्य और कला की दृष्टि ये दो लेखों मुनि जिनविजयजी-संपादित से भी इनका महत्व है कई पत्रों का ऐलि- ग्रन्थ में प्रकाशित हुए हैं। उनके रचित हासिक दृष्टि से भी। इन विज्ञप्तिलेखों के अन्य भी ऐसे ४, ५ लेख मेरे देखने में लिखने की कला का भी खुद विकास हाऔर आए है, जिनमें से तीन अपूर्णरूप से प्राप्त बडे बडे महाकाव्य जैसे लम्बे और विशि हुए है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण 'चित्रकोश' लेख तयार होने लगे। चित्रकला के संयोग नामक विज्ञप्ति लेख है, जिस की एकमात्र से १७ वीं शताब्दी से इन लेखों का कलात्मक अपूर्ण प्रति हमारे संग्रह में है। महत्व भी बड़ा और १०८ फुट तक के लम्बे प्राप्त प्रति के प्रारंभ के ४ पत्र नहीं है, सचित्र विज्ञप्ति लेख तैयार हुए । प्राप्त पचासों जिनमें इम लेखका प्रथमाधिकार में था । मचिन विज्ञप्तिलेख इस के प्रमाण है ।. जिस तीसरा अधिकार ८ वें पत्र से प्रारंभ होता है, पर नगर के श्रावकों की और से ये भेजे जाते. उसके आगे के पन्ने नहीं मिलने से प्राप्तप्रति में उम नगर का चित्रमय दृश्य भी इन पत्रों में उसके नौ पद्य ही मिले हैं अत: इसके और देखने को मिलता है। साहित्य और काव्य की कितने पद्य और थे तथा तीन अधिकार ही थे दृष्टि से भी इन लेखों को खूब सजाया जाता या लेख और भी बड़ा था? यह बतलाने का रहा । ऐसे कुछ विज्ञप्तिलेख का संग्रह मुनि कोई साधन नहीं है। द्वितीयाधिकार में जिनविजयजीने "सिंधी जैन ग्रंथमाला" से 'नगरवर्णन' ४७ पद्यों का है। तीसरे अधिगतवर्ष प्रकाशित किया है। हमारे संग्रह में कार में परम गुरुराज-वर्णन (प्रारंभ होता) भी संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, राजस्थानी भाषा है। द्वितीयाधिकार में सादही नगर का के गद्य-पद्यमय कई विज्ञप्तिलेख है, जिनमें वर्णन है और तृतीयाधिकार में विजयप्रभसरि से कुछ तो मुनिजी को भेजकर उक्त संग्रह का वर्णन है। इससे यह लेख सादडी से
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