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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir અંક ૫ ] આચાર્ય ભદ્રબાહુ કા સામુદ્રિક શાસ્ત્ર ઔર ઉસમેં ઉદિલખિત દે અપ્રાપ્ય ગ્રન્થ [ ૬૧ भांलागार स्थापितं, 'च जीर्ण पुस्तकं जेसलमीर आवीने श्रीमुनिसुव्रत प्रभुजीनी प्रतिमा समक्ष नगरे पुन, प्रेषितं । श्रीरातु । अट्ठम तप सहित प्रायश्चित लीधुं हतुं ते बखते एवीरीते चौदपूर्वधारी श्रीभद्रवाहस्वामिए तेमनां अधिष्टायकजीर साक्षात् श्रीमंदिर स्वाजगत् जीयोना हित माटे रचेलु 'सामुद्रिक शास्त्र' मीजीने पूछीने अमोने ते दोषरहित जणाव्या संपूर्ण थयु ।" हता. ते विषेनुं विशेष वृत्तांत अमारा रचेला वास्तव में उपरोक्त प्रशस्ति विश्वसनीय "यात्राप्रबंध" नामना ग्रंथथी जाणी लेवु । नहीं प्रतीत होती । परवर्ती किसी व्यक्तिने "एवी रीतें मनुष्य जातिने विशेष उपइस ग्रंथकी प्रामाणिकता को बढ़ाने के लिये योगमां आवतां अश्वादिक पशओनां पण रक्षण ही जोड़ दी प्रतीत होती है क्योंकि आचार्य कां। विद्याप्रवाद पूर्वमा सबली जातिनां पशु, हेमचन्द्र के समय जेमलमेर में ज्ञानभंडार था पक्षि विगेरे प्राणीओनां लक्षणो घणां विस्तारथी ही नहीं । जेसलमेर तो उनके स्वर्गवास के कह्या छ, पण मनुष्य जातिने विशेष उपयोगमा आसपास या उसके बाद ही बसा है। यद्यपि आवतां प्राणीओनां जलक्षणो आ. प्रथमां. वहाँ के बड़े ज्ञान भंडार में १० वीं से १३वी संकोचथी कह्यां छ । केमके ते सघलां लक्षणो शताब्दी की भी कुछ प्रतियां मिली हैं पर वे वरणवत्राथी ग्रंथ घणो बधी जाय। माटे ते प्रतियां किसी और ही जगह से यहां आई हैं। लख्या नथी। पक्षीओन लक्षणो अमोए करेला सम्भवतः १४-१५ सदीये मुसलमानों के “पक्षी परीक्षा" नाम्ना प्रथमा कहेला छ । अत्याचार से बचाने के लिये यहां अन्य ते तेमाथी जाणी लेवा । भंडारों की कुछ प्रतियां यहां पहुंची है। जिन- आ ग्रंथ पाटलीपुत्रनां निवासी परमाहती भद्रसूरि से पहले यदि यहां ज्ञानभंडार होगा श्री सुहंसी नामनी श्राविकाना आग्रहथी अमोए तो बहुत साधारण ही। वर्तमान ज्ञान-भंडार विद्या प्रवाद पूर्वमाथी उद्धरीने तेने माटे की स्थापना जिनभद्रसूरिजीने ही यहां की थी। रच्यो छे। खैर इस सामुद्रिक शास्त्र की प्राचीन हस्त- इस ग्रंथ के प्रारम्भ में लिखा है कि लिखित कोई भी प्रति मेरी जानकारी में सामुद्रिक लक्षण बतलाने के बाद दीक्षा आदि किसी भी भंडार में आज प्राप्त नहीं है। के मुहूर्त का भी स्वरूप कहा जायगा। पर - इस ग्रंथ में कुछ ऐसे प्रसंग व उल्लेख प्रकाशित ग्रंथ में तो वह देखने में नहीं। कई हैं जिन से भद्रबाहु स्वामी ही इसे फरमा प्रासंगिक कथाएं अवश्य दी गई हैं। रहे हैं ऐसा आभास होता है। जैसे पृष्ठ . अपर जो दो उद्धरण दिये गए है उनमें: ६८ में लिखा है कि (१) अमोने पर एक “यात्राप्रबन्ध" और "पक्षी परीक्षा" नामक वख्ते पाटलीपुत्रमा मलेला संधे नेपालमाथी. ग्रंथ भद्रबाहुस्वामी के बनाने का उल्लेख किया चोलाव्या हता। पण ते बख्ते अमो त्यां चौदे गया है वे ग्रंथ भी अब प्राप्त नहीं है। इस पूर्व मुहूर्तवारमा गणी जवाय, एवी विद्या साधता लिये विद्वानों का ध्यान उन दोनों अलभ्य हता। तेथी त्यां पाटलीपुत्र आववानी अमोए ग्रंथो की खोज और सामुद्रिकशास्त्र की प्राचीन संघनी आज्ञानो भंगकर्यो हतो। भने तेना प्राय- प्रति के अन्वेषण की ओर आकर्षित करने के श्चित माटे अमोए पण एक बखत भृगुकच्छ , लिये ही यह लेख लिखा गया है। For Private And Personal Use Only
SR No.533911
Book TitleJain Dharm Prakash 1961 Pustak 077 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1961
Total Pages19
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size8 MB
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