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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य भद्रबाहु का सामुद्रिक शास्त्र और उस में उल्लिखित दो अप्राप्त ग्रन्थ प्राचीन आचार्यों के नाम से रचे गए अनेक संदिग्ध ग्रंथ मिलते हैं और बहुत से ग्रंथों का अन्य ग्रंथों में उल्लेख मिलता है पर वे वर्तमान में प्राप्त नहीं हैं, इसलिये वे उल्लेख कहाँ तक सही हैं यह एक प्रश्न से बन जाता है । चतुर्दशपूर्वधर आचार्य भद्रबाहु का जैन-ग्रंथकारों में बड़ा महत्त्व है क्यों कि उन के बाद से ही १४ पूर्वो का परिपूर्ण ज्ञान लुप हो गया। उनकी रचनाओं में ३ छेदसूत्र, १० नियुक्तियां तो प्राची काल से मान्य है । यद्यपि नियुक्तियों में कुछ पीछे के समय के उल्लेख प्राप्त होते हैं । इस से उनके प्रथम भद्रबाहु की रचना होने में संदेह प्रकट किया जाता है । भद्रबाहु -संहिता नामक एक ज्योतिष ग्रंथ भी उनके नाम से प्रसिद्ध है चूंकी ज्योतिषी भद्रबाहु मिहर के भाई माने जाते हैं इसलिये वे पीछे के ही हैं । इसी तरह करीब ज्ञानपूर्ण एक ग्रंथ सामुद्रिकशास्त्र भद्रबाहु रचित आवक भीमसी माणकको प्राप्त हुआ था जिसका गुजराती भाषान्तर नागरी लिपिमें संवत् १९५५ में उन्होंने प्रकाशित किया। इस ग्रंथ की मूल प्रति किस भंडार से उन्हें प्राप्त हुई, इसका उल्लेख ग्रंथ में नहीं किया गया के अन्त में एक विचारणीय उल्लेख है जिसमें लिखा है 'आ मंथनी प्रथम प्रति चौद पूर्व भारी श्री भद्रबाहु स्वामिनी आज्ञाथी महामुनि श्री स्थूलभद्रजीए नेपाल देशनी भद्रकरा नामनी नगरीमां लखी ।' वराह पर भाषान्तर " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ले० अगरचंद नाहटा ते उपरथी पाटलीपुत्रना निवासी श्रीमुख नामना श्रावके लखावी । ते उपरथी परमार्हत श्री कुमारपाल राजानी आज्ञाथी कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्ये पोताना परम विश्वासु शिष्य पासे ताडपत्र पर लखावी, तथा ते आ प्रनि श्री कुमारपाल राजाए पोताना भंडारमां महोत्सव पूर्वक धारण करी । ( श्री हेमचन्द्र आचार्य आ प्रतना हल्ला पत्रमा पोताना ज हस्ताक्षरथी लखे छे के ) " इदं सामुद्रिकशास्त्र यात्रार्थं गतेन मया मरूभूमौ जेसलमीरनाम्नोनगरस्य जैन पुस्तकालयमध्यगत लेप्यमयत्तीर्णस्तंभतस्तालपत्रेषु लिखित लब्धं तत्पुस्तकं मया तत्रस्थसंघाज्ञया प्रतिलिख्य त्रिलोकितं, तदा " इदं सामुद्रिक शास्त्र श्री नेपालदेशस्य ललाम भूतायां श्री भद्रंकरानामनगर्यां चतुर्दशपूर्वरूच्छ्रीवास्वामिनां परमाज्ञायामहामुनि श्री स्थूलभद्रेण स्वहस्तलिखित जीर्ण तालपत्रमय पुस्तकतो विक्रमसंवत् एकोनविंशत्यधिक त्रिशतवर्षे पाटलीपुत्रनिवासी श्री मुखनाम श्रद्धार्थ भिक्षुकरत्नशेखरेण लिखितं " इति लेखो मयातदंतिमतालपत्रेष्ट, तद्विलोक्य मे मनसि महादाश्चर्य जातं, पश्चाद्बहुप्रयत्नेन जेसलमीरस्थ संघाज्ञया तज्जीर्णपुस्तकं मयाऽणहिलपुरवत्तने महानीत च परमाईत श्री कुमारपालनरेंद्राणां दर्शितं तद्दृष्ट्वा जातहर्षेण नरेंन्द्रेण नवीनतालपत्रोपरि तस्य प्रति ममविश्वस्त शिष्यपार्श्वेलिखाप्य महोत्सवपूर्वकं स्व६०) For Private And Personal Use Only
SR No.533911
Book TitleJain Dharm Prakash 1961 Pustak 077 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1961
Total Pages19
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size8 MB
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