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થીને ધર્મ પ્રકાશ
सौ जीव
( ११ )
चनवाली प्रति भी अभी कहीं प्राप्त है । यदि किसी को जी के पदों के Pararasa की वह भी अन्य कोई पूरी प्रति कहीं प्राप्त हो तो उसकी भी सूचना हमें दी जाय । पदों के आधुनिक विवेचन श्री बुद्धिसागरसूरि का पूरा और श्री मोतीचंद कापड़िये का करीब आधे पदों का एक खंड प्रकाशित हुआ था उसके बाद श्री जैन धर्म प्रकाश में अवशिष्ट कई पदों का ( उनका किया हुआ विवेचन) छपा था जो सायद उन्होंने तो सभी पदों का लिख लिया होगा, अतः महावीर जैन विद्यालयates के कार्यकर्ताओं को आनन्दघन पद रत्नावली का दूसरा भाग शीघ्र प्रकाशित करना चाहिये | हिंदी में मेरे भित्र उमरावचंदजी दरगड़ ने जो पदों का विवेचन लिखा है उसे शीघ्र ही प्रकाशित किया जायगा । "आनन्दघनजी के पदों की एक पुरानी प्रति दिल्ली के दिगम्बर भंडार से अभी मिली हैं, उसमें पूर्व प्राप्त पदों को लिखने के बाद ३ पद और नये लिखे मिले हैं, उनकों नीचे दिया जा रहा है। अभी तक यह पद अन्य किसी प्रति में देखने में नहीं आये ।
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र विद्या साधै,
फल फोस ।
सेवा पूजा विधि आराधै, परगासै आनन्द को || ३ || पि०
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दग्यो जू महा मोह दावानल, पार ब्रह्म की ओट |
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कृपा कटाक्ष सुधा रसधारा,
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विषम काल कालकी चोट ॥ १॥ दग्यो०
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अनेक करि जीय बाँधो. दूतर दरप दूरित की पोट । चरण शरण आवत तन मन की, किसी गई अनादि की खोट ||२|| दग्यो अब तो गहे भाग बड़ पायौ, परमारथसु नात्र दृढ़ कोट । निस्सल मांनि सांच मेरी कही, आनन्दघन घन सदा अवोट ||३|| दग्यो
१ राग-रामगिरी
प्रिय माहरो जोसी हुं पियरी जोसणी, कोई पडोशण अन्तरजामीनुं पूछो जोस ।
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पूछो ते सगलौ कहिसी, सांसो रहने रहै कोई सोस ॥ १ ॥ पिं० तन धन सहज - सुभाव विचारे, ग्रह युति दृष्टि विचारो तोस । - शशि दिसी काल कलावल घारै,: तत विचारी मनि ताणै रोस || २ || पि०
३ राग - आशा
कुण आगलि कडे खाटुं मीठं, राम सनेहीतुं मुखई न दीढुं ।
मन विसरामीनुं मुखडुं न दीहुँ, आममनुं ॥ टेक
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जे दीठा ते लागइ अनीष्ठ, मनमान्यां विणु किम कहुं मीठा । धरणी आगास बिचै नहीं दीठा ॥१॥ कु० जोतां जोतां जगत विसेखु, उण उणिहारे कोई न देखं । अणसमज्यं किम माठु लेख ||२|| कु०