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आनन्दबलजी के तीन नवीन प्राप्त पद
लेखक : श्री अगरचंदजी नाहटा श्वेताम्बर जैन आध्यात्मिक कवियों में लिखित विवेचन अभी छपा नहीं है। इसी योगीराज आनन्दघन का स्थान सर्वोपरी है। प्रकार हिंदी में श्री उमरावचंदजी दरगड़ ने उनकी रचनाओं में तो केवल चोवीसी के २२ जो भावार्थ लिखा है वह भी अप्रकाशित है। स्तवन और फुटकर बहुत्तरी पद ही मिलते है
आनन्दघनजी के पदों के संग्रह का नाम पर उनका अर्थ बहुत ही गंभीर है। चोबीसी
तो बहत्तरी प्रसिद्ध है, पर पदों की संख्या पर तो प्राचीन बालावबोध-भाषा टीकाऐं भी कई मिलती है और वर्तमान में भी कई
११२ तक पहुंच गई है। वास्तव में वे सभी
आनन्दघनजी के ही रचित नहीं है। सुखानंद, लेखकोंने उनका विवेचन लिखा और वह प्रकाशित हो चुका है। उपाध्याय यशोविजयजी"
कबीर, दयानन्द आदि अनेक कवियों के पद
भी उनके नाम से प्रचारित हो गये है। हमने की रचनाओं की एक प्राचीन सूची में आनंद-.
आनन्दधन की व पदों की प्राचीन हस्तलिखित घनजी के २२ स्तवनों पर उनके रचे गये।
प्रतियों की तलाश की, तो सब से प्राचीन बालावबोध का भी उल्लेख है पर अभी तक
प्रति में ६५ पद मिले, उसके बाद की प्रतियों उसकी कोई भी प्रति नहीं मिली। दूसरा
में ७५, ७७, ८४ तक पद लिखे हुए मिलते वालांवबोध ज्ञानविमलसूरि का है वह साधारण
है। कुछ प्रतियों में प्रकाशित पदों के अतिसा है और वह छप चुका है । तीसरा मह रिक्त भी एक ही पद मिलें है, यद्यपि भाषा खपर्ण बालावबोध लघु आनन्दघन योगीराज और भावों को देखते हुए वे सभी पद आनन्दज्ञानसारजीने संवत् १८६६ में ३७ वर्षों के .
नजी के नहीं लगते । अभी पदों की प्राचीन मनन के पश्चात् किशनगढ में लिखा । यद्यपि
५ प्रतियों का अन्वेषक कार्य हमारा चालू है, इनके नाम से संक्षिप्त विवेचन भीमसी माणक
प्रकाशित पद्यों के पाठ में भी बहुत गड़बड़ी ने छाया है पर वास्तव में मुद्रित अंश की
है, उसका संशोधन भी प्राचीन प्रतियों के आधार भाषा बदल दी गई है और मूल बालावबोध
से ही कीया जायगा । जिस किसी सजन को को बहुत संक्षिप्त कर दिया गया है। ज्ञान
। चोवीसी और पदों की प्राचीन प्रति प्राप्त व ज्ञात सारजी के इस बालावबोध की एक प्रति हमारे
हो, हमें सूचित करने का अनुरोध है ।... .संग्रह में और एक यहां के बड़े ज्ञानभंडार में है उसका परिमाण ३८५० श्लोकों का है। पदों पर प्राचीन बालावबोध केवल ज्ञानउसको पूर्ण रूप से प्रकाशित होने पर आधुनिक सारजी ने ही लिखना प्रारंभ किया था, पर विवेचकों का काम बहुत सरल हो जायगा । सम्भवतः वे पूरा नहीं कर पाये । हमें उसकी आधुनिक विवेचकों में प्रभुदास पारेख, स्था- जो दो तीन प्रतियों मिली उनमें केवल १४ नकवासी मुनि गब्बूलालजी, डाक्टर भगवानदास पदों का ही विवेचन मिला है। श्री मोतीचंद के आदि विवेचन छप चुके हैं। संतबालजी कापड़िया के उल्लेखानुसार ३५ पदों के विवे
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