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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. Diwalimo-memand प्राmp m memaprasna - n 000000ann वीर-वन्दन -~80युगों के तप के फलं साकार, अहिंसा के विद्युत आगार, प्रेम के पन्थ-प्रदर्शनकार, दया के जीवन धन रखवार। घटा कर के जगती का भार; चेतना का देने उपहार, क्षमा का करते हुवे प्रसार, कभी आये थे हो साकार ॥१॥ प्राणियों की सुन मूक पुकार, व्यथा का करने को संहार, घृणा का करने को प्रतीकार, ऐक्य का करने को विस्तार । अभयदा शक्ति-प्रदर्शनकार, कभी तुम प्रकटे नर-तनु-धार, आदि-मध्यान्त-हीन-आकार, तुम्हारा कौंन पासका पार ? ॥२॥ दिव्य मानवता का चीत्कार, डूबता उतराता मझधार, प्रगति-काधिरता था जब द्धार, बन रहा तम-मय जब संसार। धर्म बनता था अत्याचार रोक हत्तंत्री की झंकार, लोक का करने का उद्धार, तभी प्रकटे सिद्धार्थ-कुमार ॥३॥ योग का फीलिंत अन्तर्धार, मुक्त था जिनका लस्स अवतार, जिन्हें लखकर बलशाली मार, छिपा था सांगर मध्य अपार । कलाओं का महान् उपकार, हुवा जिनका करके सत्कार, नहीं उपमेय- मध्य संसार, दीखता उनका है लाचार ? ॥४॥ विश्व की मानवता के प्यार, प्रकृति की जुता के आधार, गुणों के श्रोतों के आगार, कर्म-बन्धन के मोचनहार । पूर्ण-जीवन के अन्तिमद्वार, सांधनाओं के फल साधार, भगवती करुणा के अवतार, हमारा वन्दन हो स्वीकार ॥५॥ राजमल भण्डारी-आगर. ROCEDGMERE3D me.PUR - Denomenon -Amerson ama n For Private And Personal Use Only
SR No.533812
Book TitleJain Dharm Prakash 1952 Pustak 068 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1952
Total Pages28
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size11 MB
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