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પુસ્તક ૬૮ મ
५४.५
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नैन धर्म प्रकाश
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: शष्णु :
मरुदेवी - मोहविलसित ।
( कवि - साहित्यचन्द्र बालचंद हिराचंद, माळेगाव )
बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन ?
जंगल में वह फिरता होगा
भूखतृषा से पीडित होगा
अन्न वस्त्र जल उसे कहां से कौन खिलाये सुंदर भोजन ? बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन ? ॥ १ ॥
वस्त्र उसे कोई मिले कहां से ?
सोना उसको नित्य धरा से
વીર સ, ૨૪૯૮ वि.सं. २००८
गर्मी सरदी पीडा होंगी
निद्रा कैसे कहां मिलेंगी ?
मैं हूं माता दुखिनी उसकी दुःखों की मैं हो गई भाजन
बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन ? ॥ २ ॥
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कहो कोई संदेश ऋषभ का मेरा बनकर बंधु साजन बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन १ ॥ ३ ॥