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YAAN
नधर्म प्राश
પુસ્તક ૬૮ ૬. भ3-४
: पोष-मह : :
स. २४७८ 1. स. २००८
वंदना।
राजमल भण्डारी-आगर निराकार है याफि साकार है।
गुणागार या निर्गणागार है॥ निराधार का जो कि आधार है।
उसे ही हमारा नमस्कार है॥१॥ सभी ज्ञान का जो कि आगार है।
दया का बड़ा जो कि भण्डार है । मिटाता सदा जो अंहकार है।
___उसे ही हमारा नमस्कार है ॥ २ ॥ सुसौन्दर्य. जो पुष्प का सत्त्व है।
सुआनंद जो प्रेम का तत्त्व है ॥ कि जिसका यही सत्य आकार है।
उसे ही हमारा नमस्कार है बड़ा तुच्छ को जो, बनाता सदा ।
दया दीन पर जो दीखाता सदा ॥ कि जीसकी कृपा का नहीं पार है। . .. ....
उसे वार सो-सो नमस्कार है ॥ ४ ॥
जिसका यस ही
सदा खाता सदा
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