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॥जीवन का कुछ ध्येय हो॥
अपने जीवन में बनाना, ध्येय तो कुछ चाहिये । चिन ध्येय का जीवन, तो बम निरर्थक समझना नानिये ॥ १ ॥
खाने कगाने भोगने का, है नहीं कुछ ध्येय हो ।
दो आत्ा का उत्कर्ष, वैसा ध्येय होना चातिये ॥ २ ॥ दिन रातरूपी चक्र तो, चलते रहेंगें विश्व में । विश्व की अनंतता पर, लक्ष्य देना चाहिये
हर कार्य का कारण रहा, कारण बिना नहीं कार्य है ॥
जीवन का कारण न समझे, तो समझाना चाहिये ॥ ४ ॥ वैसे सब ही कारणों से, कार्य अपना कर रहे ॥ विश्व के इन कारणों को, न यथार्थ कहना चाहिये ॥ ५ ॥
कोई रखता ध्येय अपना, धन उपार्जन का सदा ॥
कोई अपनी कीर्ति में, आसक्त बाहना चाहिये ॥ ६ ॥ संतान नहीं बद संतान प्राशि का बनाते ध्येय है ॥ त्रिया नहीं वः त्रिया में, तत्पर ही कहना चाहिये ॥ ७ ॥
वैभव नहीं वह बनाते, ध्येय वैभव प्राप्ति का ॥
है देह जीन की रोगमय, आरोग्य उनको चाहिये ॥ ८ ॥ है कमी जीस वस्तु की, उस वस्तु के ही धोग में ॥ विश्व के सब मानवी को, आसक्त कहना चाहिये ॥ ९ ॥
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