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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org जैनत्व। + + S जैनत्व अपनाते वही, सच्चे जगत में जैन है। जनत्य से जो दूर है, वह जैन ही क्या ? जैन हैं ॥ १ ॥ जल है साधारण मनुष्य, और जैन में क्या भेद है ? इस ' समस्या को समझना, सब से पहिले थैन है ॥२॥ __शान किया की दो मात्रा-चाला कहाता जैन है। मात्रा नहीं वह जन कहाता, इस में नहीं संदेह है ॥ ३ ॥ ६ सुदेव, सुगुरु, सुधर्म का, सच्चा उपासक जैन है। सुदेव, कुगुरु, कुधर्म का, मिथ्या जैन की ऐक कैन है ॥ ४ ॥ सगरएि से जग को निटाले, आदर्शदी पद जैन है। है माननीय सब के लिये, इस में नहीं संदेह है ॥ ५ ॥ जीवन बना जीनका दयामय, वह जैनत्वशाली जैन है। . । अपनाई नहीं जीतने अहिंसा, वह जैन ही क्या जैन है ॥ ६ ॥ प्रमाणिक नहीं जीवन जिन्हों का, नहीं योग्य ही वह जैन है। मृपावाद का परिहार करते, वो ही प्रमाणिक जैन है ॥ ७ ॥ । अदत्त के जो कार्य करते, कैसे कहें वह जैन हैं ? अदत्त को जो धूल समझे, वो ही सच्चे जैन हैं ॥ ८ ॥ परनारी से जो प्रेम करते, और बनते जैन हैं। यह जैनत्व (!) को लांछन लगाते, इससे सब बेचैन हैं ॥ ९ ॥ मर्यादित नहीं है लोग जिन का, वह जैन नहीं अजैन है । है आकांक्षा मर्यादित जिन्हों की, वह श्रेष्ठतम ही जैन हैं ॥ १० ॥ देशविरति को ग्रहण कर, तत्व का ही ध्येय है । वह विवेकी विश्व में, सय के लिये श्रद्धेय हैं ॥ ११ ।। दीन दुःखी निरपराधी की, अनुकंपा करते जैन हैं। भर आततायी अन्यायी पर, नहीं रहम करते जैन हैं ।। १२ ।। जैनत्व और वीरत्व से, जीवन विताते जैन हैं। कायर नहीं मांयकांगले, बनते कभी नहीं जैन हैं ॥ १३ ।। देश राष्ट्र समाज की, सेवा को तत्पर जैन हैं। ऐकान्तवादी जैन नहीं, स्याद्वादवाले जैन हैं ॥ १४ ।। प्राचीन उन इतिहास में, वीरत्वशाली जैन है। प्रभु बीर के सिद्धान्त में. सब वीरबर ही बैन है ॥ १५ ॥ - २ (१७६ ) SCH -3641 For Private And Personal Use Only
SR No.533769
Book TitleJain Dharm Prakash 1948 Pustak 064 Ank 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1948
Total Pages32
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size12 MB
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