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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir VËNCULUCUSUS UEL SUEUEUEUEUCLSUZUSUS UÇUCUSUFURUCUCURUSUS USUS अहिंसा ही अमृत की खान है। अहिंसा है अमृत की खान, बनाती सदा महाबलवान ॥ टेक० ॥ जो इसका है पाचन करते, निर्भय होकर जगमें विचरते । शत्रु भी उनके नहीं बड़ते, देती यह वरदान ॥ अहिंसा ॥१॥ भयभीत जगत में वोही कहाते, हिंसा कर जो पर को सताते । राज्य और से भी दण्ड पाते, सहते बहुत अपमान ॥ अहिंसा ॥ २ ॥ मूल धर्म की यह बतलाई, नीव क्रिया की इस पर रचाई । आगम वेद पुरान मै गाई, गाई जगने महान ॥ अहिंसा ॥ ३ ॥ जो इसको कायर बतलाये, वह धर्मतत्त्व से दूर कहावे । शंका सदा ही इस पर लाये, वह हे नहीं चतुर सुजान ॥ अहिंसा ॥ ४ ॥ पूर्ण अहिंसा पालन करते, उन्है महारमा जग में कहते । शत्रु मित्रसम दृष्टि रखते, है यह सर्वविरति गुनखान ॥ अहिंसा ॥ ५ ॥ देशविरति में यह बतलाई, निरपराधी नहीं जाय सताई। अपराधी नहीं जाय बचाई, है यह गृहस्थधर्म फरमान ॥ अहिंसा ॥६॥ अहिंसा जगमें विजयी कहाई, आजादी इससे ही आई। संग में अपने क्रान्ति लाई, होगी अन्त में विजय महान ॥ अहिंसा ॥७॥ हिंसा विष की खान कहाई, जो करते उनने देह गुमाई । आबादी मिटा बरवादी लाई, हो गये वह परेशान ॥ अहिंसा ॥ ८॥ हिंसा का संघर्ष छोड़ा था, जर्मन ब्रिटन खुव लड़ा था। हिटलर लड़ने हुवा खड़ा था,रह गये दिल में ही अरमान ॥ अहिंसा ॥२॥ रहम करो रहेमान बतावे, रहम से आतम शान्ति पावे । भूल गये है मिस्टर जिन्ना, अल्ला व रहेमान || अहिंसा ॥१०॥ भूले वह वरवाद हुवे हैं, हिटलर से नावुद हुवे है । सदा रहेगे कायम जग में, वही अहिंसावान ॥ अहिंसा ।। ११ ॥ अहिंसा आगृत जीसने पीया, वही विश्व में सजा जीया । मरा हुवा भी है वह जीता, है वह अमर महान || अहिंसा ॥ १२ ॥ अहिंसा विजयी सदा हुई है, हिंसा कायम नहीं रही है। विश्वोम की प्रतीक अहिंसा, है वीरवरों की खान ॥ अहिंसा ॥ १३ ॥ हिंसा का साम्राज्य बड़ा था, जब वीर प्रभु अवतारी हुआ था । हिंसा का अस्तित्व मिटाया, चला अहिंसा वाण ।। अहिंसा ॥ १४ ॥ वीर प्रभु की वीर अहिंसा, चाहे दुष्ट और कर दो फैसा । कर देती अमृत के जैसा, जो पावे स्व-'राज' महान ॥ अहिंसा ॥१५॥ राजमल भण्डारी-आगर (मालवा) THEATURESUFFET । ULUCUCURUCAPU2uruz UZUELE וולולולולולולולולולולולול For Private And Personal Use Only
SR No.533763
Book TitleJain Dharm Prakash 1948 Pustak 064 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1948
Total Pages36
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size14 MB
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