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सताने में न सुख मानो !
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सताते हैं जो औरोंको, सताये वह भी जाते हैं। दुःखाते दिल जो प्राणीका, वो हानिको उठाते हैं ॥१॥ सरासर सामने अनुभव, बताता है यही हमको। जुलम की म्याद टुंकी है, निकट वो मौत लाते हैं ॥२॥ निराला न्याय कुदरतका, नहीं अनभिज्ञ वो जाने। श्रद्धा बलवान है जीनकी, वही निश्चय बताते हैं ॥३॥ जीन्होंने धर्मको समझा, हुवे समदृष्टि वो जगमें। धर्म. ढोंगी नहीं जाते वो दान वही कहाते हैं॥४॥ दीवाने जगको वे करते, बड़े करतज्यकी बाते । लखो चारित्र जब उनका, करमको वो छीपाते हैं ॥५॥ छीपाये छीप नहीं सकते, करम बलवान है जगमें। करो गुपचुप मगर वह तो, प्रगट हो बाहर आते हैं ॥ ६ ॥ सतानेका बनाया ध्येय, जीसने अपने जीवनमें । जगतकी दृष्टि से वो जन, सदा धिक्कारे जाते हैं ॥ ७॥ हुइ है प्राप्त सत्ता जो, उसे सद्भाग्य ही समझो। क्रिया उपयोग अनुचित तो, वही फिटकारे जाते हैं ॥८॥ सत्ताधारी की सत्ता भी, न चलने दी है कुदरतने । बड़ा करके उस मानव को, वही नीचे गीराते हैं ॥९॥ इसी कारण सताना है, नहीं परको कभी अच्छा। सताने से सताये के, कटु फल भोगे जाते हैं ॥१०॥ हुवे कुछ पुन्य पोते तो, नहीं मालुम हो यहां पर । भविष्य में उसके बदले तो, चुकाये अवश्य जाते हैं ॥ ११ ॥ विनय है आत्म ! यह तुमसे, सताने में न सुख मानो। समझते आत्मवत् सबको, वही सज्जन कहाते हैं ॥ १२ ॥
राजमल भंडारी-आगर( मालवा) poooooomnpOOON ( १७६ ).pdMPOORNAPOOOOOOOO...