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________________ अ *35* 35 * *3 8 *35*35 राजराजेश्वर HALKARO FACROROCCASSAGE कहलाता जग में नाम अपना, ऐक ही बह राज है। मल्ल से पाना विजय ही, राज का बस काज है ॥ १ ॥ राज कहते हैं किसे, और कौनसा वह राज है। शक्ति अनंती का धणी, बस वोही चेतन राज है ॥ २ ॥ इसकी शक्ति से जगत के, होते सब ही काज है। इस के बल पर ही टीकॉ, सब राज और समाज है ॥ ३ ॥ पर मगर भूले हैं इस. को, खैद ! ही यह आज हैं। राज शक्ति की जगह, यह देह बनी सरताज है ॥ ४ ॥ इस देह में लयलीन बन, सारा गुमाया राज है। कामी न बनाती कामी को, वैसा बना यह साज है ॥ ५ ॥ शक्ति के होते हुवे, वह वनग मोहताज है । छट पटाता देह पिंजर में, यही दिन रात है ॥ शक्तिशाली राज पर, इस देह का उत्पात है। इन्द्रिरूपी कामिनी से, पा रहा यह त्रास है ॥ ७ ॥ मेष के संग सिंह बालक, भूलता निज जात हैं। वैसे भूला कर देहने, परतंत्र बनाया आज हैं ॥ ८ ॥ राज अपने आत्मबल से, दे हटा उत्पात है। मल्ल को कर दे परास्त, तो सुगम सब बात है ॥ ९ ॥ ज्ञान का वह कौष भी, रहता सदा तुझ पास है। अक्षयनिधि होते हुवे, तु क्यों बने मोहताज है ॥१०॥ अपनी शक्ति को समझ ले, तो मिटे सब त्रास है। राजराजेश्वर तु जग का, जग तो तेरा दास है ॥ ११ ॥ राजमल भंडारी आगर (मालवा) ASSAGAR ( १५२ ) SAIREC RECESS SSSSSSSSSS
SR No.533744
Book TitleJain Dharm Prakash 1947 Pustak 063 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1947
Total Pages32
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size4 MB
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