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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આઠમી કોન્ફરન્સના પ્રમુખનું ભાÜણુ. असहाय छोड़कर परमधामको सिधारते है !! उन मावापोको किन शब्दों प्रकारे जिन्होंने अपनी पुत्रीको स्वार्थवश दुःखसागर में डबा दिया !!! कन्याविक्रय, मृत्यु के बाद रोना, विवाद्यादि माङ्गलिक कायम बुरी बुरी गालियां गाना इत्यादि कुरीतियां जहांतक हो सके शीघ्र दूर कर देनी चाहिये. विवाहमें आतशबाजी और फुलवाडी में दव्य व्यय करना, वेश्याओंका नाच कराना इत्यादि विनाशकारी रीवाज बहुत जलदी छोड़ देना चाहिये. अपनी सन्तानकी शिक्षा में व्यय न करके उक्त अनर्थकारी कामोंमें व्यय करनेसे कभी भी अपनी दशा न सुधरेगी. उप भाइयो! जीर्ण मन्दिरों का भी उद्धार करना अत्यावश्यक है, बिना जीर्ण मन्दिरों के उद्धार किये नवीन मन्दिरोंके निर्माण में द्रव्य-व्यय करना उतना लाभदायक नहीं हो सकता, अपना भी कहता है कि नवीन मन्दिरके वनवाने की अपेक्षा से जीर्ण मन्दिरका सुधारना अधिक लाभकारी है. मेरा कहने यह आशय नहीं है कि नवीन मन्दिर बनवाने नहीं चाहिये किन्तु जहां मन्दिर नहीं है वहां नवीन मन्दिर बनवाकर भगवानकी पूजा करना अपना कूलम हैं साथ ही जीर्ण पुराने मन्दिरका उद्धार प्रथम कर्तव्य है क्योंकि उनसे जैन धर्मका गौरव है. इसी तरह शिलालेख भी हमको पूरा ध्यान देना चाहिये. जैन धर्म सम्बन्धी जितने शिलालेख अव मिले है उनसे बहुत लाभ हुआ है. बंडे बडे विद्वानों को यह शङ्का थी कि जैन धर्म बौद्ध धर्मसे निकला है परन्तु मथुराके शिलालेखोंसे उक्त शङ्का दूर हइ और पाश्चात्योंके अन्तःकरणपर जैन धर्मका महत्त्व अङ्कित हुआ इससे आप समझ सकते हैं कि शिलालेखोसे कितना ast लाभ है ? For Private And Personal Use Only सज्जनों ! जीवोंकी रक्षा करना अति पवित्र धर्म है. बड़े दुःखकी बात है कि अपने बहुत से हिन्दू भाई धर्म समझकर दुर्गा मन्दिरोंमें तथा दशहगाई पर हजारों जीवोंका वध करते हैं ! हम लोगोंका पहला काम यह है कि अनाथ जीवोंकी रक्षा के लिये सर्वदा सचेष्ट रहे क्योंकि जैनधम दयामूलः यह अपना मूल सिहान् है अतः अहिंसा धर्म प्रचारके लिये हम लोग जितना प्रयत्न करें उतनाही थोडा है. 66
SR No.533334
Book TitleJain Dharm Prakash 1913 Pustak 029 Ank 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1913
Total Pages38
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size3 MB
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