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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 જનવમ પ્રકા, सर्वथा प्रशंसा योग्य है इस संस्थामें जिन जिन धनिकोंने सहायता दी है वे सभी धन्यवाद भागी है. धार्मिक लौकिक संस्थाओंकी मुधारणा करना यह कोफरन्सका मुख्य उद्देश है. निजके पारस्परिक कलहीको धार्मिक कार्यों में जगह देकर किसीने किसी रूपसे सर्व साधारण कोन्फरन्स सरीखी संस्थामें आघात पहुंचाना यह जैनोके लिए बिलकुलही निन्दाका स्थान है. ___इस लिए एक कमेटीकी आवश्यकता है जिसका यह काम होगा कि आपस आपसके मनोमालिन्यको दूर कर एकनाका संचार करे. विद्याकी कर्माके कारण धार्मिक संस्थाएं मन्दगतिसे चलती हैं और इस बातको कौन नहीं जानता कि विद्याकेविना उन्नतिकी आशा दुगशा मात्र है. इस लिए जगह जगह लड़के लडकियों के लिए पाठशालाएं स्थापन करें. श्राविकाश्रम खोलें. विधवाश्रम और अनाथालय यतीमखाना जारी करें. महाविद्यालय और बॉर्डिंग हाउस बनाये और इनमें जैन पंडिताद्वारा शिक्षाका प्रवन्ध करें. धार्मिक शिक्षाके सम्बन्धमें हम लोगोंका अपने मुनिराजोंसे विशेषतर सहायताकी जरूरत है. ___ महाशयों : प्राचीन ग्रन्यरत्नो उद्धारकी बडीही जरूरत है. जो बहुमूल्य ग्रन्थभडारोंमें सड़ रहे हैं. उन्हें प्रकाशिन करके उनमसे सर्व विय ग्रन्थोंका भिन्न भिन्न भाषाओमें सरलताके साथ अनुवाद करवानेकी जरूरत है. एसा होने से सवही देशवासियोंको इस धर्मक तत्व जाननका मार्ग खुल जायगा. जिस जगह उपदेशक नहीं पहुंचते है वहां भी पुस्तकस उपदेशकका काम निकल जाता है. नये मांदिर बनानेकी अपेक्षा पुराने मंदिगेका जीर्णोद्धार अत्यावश्यक है. प्रचलित कुरीतियों को दूर करनेका ध्यान रखना चाहिए. मामुली वातोंमें और कुरीतीयोंमें हजारों रुपये खर्च किये जाते है और आवश्यक कामोंमें कृपणता बतलायी जाती है यह ही अवनतिका कारण है. श्रीमानोको उद्योगशाळा खोलनकी और ध्यान देना चाहिये. मेरा विश्वास हे कि कॉन्फरन्समें धार्मिक और लौकिक उन्नतिके मार्गरूप प्रस्ताव पास होगे और सभी शिक्षित महावीरके अनुयायी उनका हृदयसे स्वागत करेंगे. अब में इस ब्रीटिश राज्यका अन्तःकरणसं धन्यवाद करताहूं कि जिसके पक्षपातरहित राज्यमें सर्व मतावलम्बी अपने अपने मतानुसार विना किसी प्रकारकी रोक टोकके उन्नति कर सकते है. हमारे जैनपतानुसार धर्मका यह एक मन्तव्य है कि जिस राज्यकी For Private And Personal Use Only
SR No.533333
Book TitleJain Dharm Prakash 1913 Pustak 029 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1913
Total Pages39
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size3 MB
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