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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मामा असना २२ शान ना प्रमुग्नु भाषाशु, २५ " THIS so peculiar liel himself with the interests of the Juin comme il lui :20:runj "He his cone of the wide leads in the dar a initi the end of life in Work ar minha lor in high m o they have wertaken. He is the high priest of ihr Jain Com ing und is recognized in the highest living Muthoriis" on line religion and literatures !!! oriental schwlars. ___ इन्दी महा-माके प्रताप और सदुपदेश में पंजाबमें सनातन जैनधर्मकी नींव रखी गई है. और नगर नगरमें जैन मन्दिर तैयार किये गये है. यद्यपि वह महात्मा स्वर्गवासी बोगय है नथापि पट शाख प्रवीण उक्त गुरुराजके शिप्य सम्प्रदायमें उनके पट्टधर श्री मद्विजयकमलमृरिजी महाराज, श्रीमान उपाध्याय श्री वीरविजयजी महाराज, श्रीयुत प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी महागज, शान्तमूर्ति श्री हसविजयजी महाराज, परम विग्यान श्री मुनि बल्लभविजयजी आदि मुनि राजाकी छत्रछाया जैनसमाजके मि पर निश्चल है. उन्ही न्यायाम्भानिधि के प्रशिष्य श्री मुनि लब्धिविजयजी महाराजके उपदेशसे श्री जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्सके मुरझाए हुए पधिम तीन वर्षके पीछे जीवनसंचार किया गया है. मैं शासनदेवतासे प्रार्थना करता हूं कि यह कॉन्फरन्म चीरकालनक सजीव रहे. जैन महोदय इस तन मन धन सहायता दें. इसको कायम रखनका मुदृढ प्रबन्ध करें. प्रथम इस कोन्फरन्सका बीज श्री फलोधीपार्श्वनाथ भगवानके परमप्रभावक तीर्थपर मिम्ता गुलावचंद ढढा एम. ए. ने डालाथा. जिसके लिए जैन समाज उनका वहन उपकार मानता है. यह वीज मुंबाई पाटण वगैरे नगगेम अंकुरित हुआ. क्रमशः वृक्षम्पा दिखलाई देने लगा. इसमें मिष्ट फल पानकी अागामी लोगोंके हृदय स्थान पायी हुईथी कि कई कारणोस यह कोन्फरन्सका दा तीन वप अधिवेशन न होने के कारण फिर लोगोंके दिल में संदेह होने लगा. हर्षका विषय है कि सेट जवाहरलालजी जैनी सिकन्दराबाद निवासीकी प्रेरणास और महाराज श्री लब्धिविजयजीके उपदेशसे आज हमें इस अधिवेशन करनका और सम्मीलिन हानका सौभाग्य प्राप्त हुआ है. और में आशा करताई कि मभी जनभाई इस कोन्फरन्स सरीखी सर्वोपयोगी संस्थाको अपना कर इसके उत्पादक मान्य गुलाबचन्द दृढाकि उत्साहको बढावे. और इस संस्थाके धाग सबै हितकर कार्य होनम योगद. अभीतक कोन्फरन्मकी औरसे जो कुछ हुआ है वह For Private And Personal Use Only
SR No.533333
Book TitleJain Dharm Prakash 1913 Pustak 029 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1913
Total Pages39
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size3 MB
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