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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ શ્રી જૈનધર્મ પ્રકાશે. मसे हिंसक पुस्तकों का मानना और तिनके अर्थ बदलके अन्यथा क रने यह बुद्धिमानोंका काम नहीं है इस वास्ते अज्ञानतिमिरभास्कर मेभी असत्य के खंडन वास्तेही परिश्रम और स्याही कागज काममें लीए गए है. -अहिंसा सत्य ब्रह्मचर्यादि शुभ कृत्योंकी वृद्धि करनेवालेको नो सदाही चिरंजीव ऐसा आशीर्वाद है परंतु जो कोई अमृत भोजन अशुद्ध भाजनमेसें निकालके किसी इन जातीवालेको परोरेर तवतो उत्तम जातिवाला कदापि नहीं भीगा यद्यति अवन भारत अच्छा है सानी तिर भाजनके पैर म त्यागने योग्य है. एमही शास वास्तव हिमासा प्रतिपादक है तिसको वोट कल्पना दयाका प्रतिपादक सिद्ध करना यह बुद्धिमान् सत् पुरुपाका काम नही है. वास्तवमें वे शास्त्र त्यागने योग्य है. हांजेकर दयाके उपदेशक शास्त्रानुसार तुमारे स्वामीजीने दयादि सत्कर्मोका उपदेश करा होतातो कदापि बुद्धिमान अनादर न करते. असभ्य वचनोंसे तो तुमारे स्वामीजीका रचा सत्यार्थप्रकाश भराहूआ है फ़ेर तुम अन्योंकों कडवे वचनकी दृष्टि करने वाले लिखते हुए शरमाते नही होयह बडा आश्चर्य है. एक संपीका विरोध तो सत्यार्थप्रकाश रचके तुमारे स्वामीजीनेही करा है सर्व मतवालोकों ऐसे ऐसे असभ्य और तिरस्कारके वचन लिखे है कि जिनके वाचनसें एकमपीभी होवे तो तत्काल तूट नावे. प्रियवर! सन्मूर्छि ममतका आग्रह बुद्धिमानकों न करना चाहिये । इत्यलम् विस्तरेण ॥ उधापन. આઘાપન કરવાનો રીવાજ પ્રિસિદ્ધ છે. લોકોમાં ઉધાપનને માટે ઉજમણું એ શબ્દ પ્રસિદ્ધ છે. ઉજમણું કહે અથવા ઉદ્યાપન કહે એ સર્વે For Private And Personal Use Only
SR No.533067
Book TitleJain Dharm Prakash 1890 Pustak 006 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1890
Total Pages20
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size2 MB
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