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આમાનંદ પ્રકાશ HerewIHREHRDSTNERISHAD है जब पंजाब का पुण्योदय होगा ! ?
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RECIRRORKISIS जाव की भूमि मे शुद्ध वेताम्बर जैन होंगे । अतः जब भी अवसर मिलता वे जाव दर्शन के आसपास अश्रद्धा एवं धर्म-परामुखता के उद्विग्न बने श्रावक-समुदाय को समझाते के बादल अत्र-तत्र विखरे हुए थे । श्री बुट्टे- रहते । राय जी महाराज उन बादलों के मध्य प्रभात "भूल कर भी यह कभी न सोचना कि के कोमल विकस्वर किरणावलि की भाँति दमक मेरे गुजरात चले चाने से पंजाब में सर्वत्र रह थे । उन्होंने शुद्ध श्रद्धान का प्रकार-प्रसार अंधकार छा जाएगा और जैन दर्शन रूपी सूर्य करने हेतु अपनी सर्वा शक्ति लगा दी थी। को असमय ही ग्रहण लग जाएगा। बल्कि यह किंतु तत्पश्चात् तो संयोगवश उन्हें गुजरातकी सनातन सत्य है कि इस भूमि (पंजाब) का
ओर विहार करना पडा । परिणामस्वरूप जो जब पुण्योदय होगा तब यहाँ मुझसे भी अधिक होना था सो होकर रहा । बिखरे हुए बादल दिग्गज पंडित और परम प्रतापी पुरुप पैदा पुनः एकत्रित हो, जैनत्व का अवरोध करेंगे, होंगे।" जेन दर्शन के लिए मारक सिद्ध होगे, यह श्री बुट्टेराय जी महाराज का आशीर्वाद शंका भक्तजनों के मन में दिन दुगुनी अल्पावधि पश्चात् ही सफल हुआ। महाराज रात चौगुनी बलवत्तर होने लगी । पाँजाब का जी ने जहाँ प्रभात का प्रकाश फैलाया था, श्रावकवर्ग भारी चिंता से बेचौन हो उठा दवे उसी भमि पर श्री आत्माराम जी महाराज ने स्वर में वह परस्पर फुसफुसाने लगे और एक- मध्यान्ह का प्रताप दिखाया उसे पूरी शक्ति दूसरे बात करने लगे :
से प्रकट किया । फलतः पंजाब के श्रद्धालु "श्री बदेराय जी महारोज एक बार वजाब से बाहर जाने भर की देर के दिन श्रावकवृन्द का मन ही मन अनुभव हो गया
कि महापुरुषों की वाणी कभी खाली नहीं तो हर श्रावक की विविश होकर मुंह पती बांधनी पडेगी और जिनमंदिर के दरवाजे पर ताले
जाती और प्रायः उसमें गृढ अर्थ-सकोत का लग जाएंगे।"
समावेश होता है । श्री बुटेराय जी महाराज पांजाब का आम श्रावक सहज ही इसी के हाथों हुए बीजारोपण ने समय के साथ शंका शे आशंकित हो' भयभीत था। किंत श्री आत्माराम जी महाराज के अथक प्रयास श्री बुटेराय जी महाराज स्वयं प्रखर आशावादी से वीराट वृक्ष का रूप धारण किया। पंजाब थे । उनकी दृढ मान्यता थी कि जैन दर्शन में क पुण्योदय के कारण ही श्री जैन संघ को श्री आजतक एक से एक बढकर प्रभावक सिद्ध आत्माराम जी के रूप में एक समर्थ युगवीर पुरुप उत्पन्न हुए है और भविष्य में भी अवश्य क्रांतिद्रष्टा की प्रापि हुई । (क्रमश:)
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