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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमद् विजयानंद सूरी महाराज का दिव्य जीवन --महान ज्योतिर्धर गुज. ले. श्री सुशीट हिन्दी अनु. रंजन परमार R -62HROORKIN अपकारी पर उपकार RECENTERexWAR तीर्थाधिराज शत्रुन्जय-पालीताणा में एक भरमाया है ? गाली-प्रदान और अपशब्द का यति आत्माराम जी महाराज को गाली-प्रदान उच्चारण निहायत निंदा कार्य है । आप जैसे करने का धंधा ले बौठो था । यों तो उक्त यति यति को यह शोभा नहीं देता । अगर आहार की शारीरिक अवरथा भी दयाजनक ही थी। की तंगी हो, तो नि:संकोच मुझ कहिए। मैं वात-प्रकोप के कारण वह ठीक से चल नहीं उसका प्रबंध करवा दंगा । यहाँ श्रावकों की सकता था। आँग्वों से भी उशे कम दिखाई देता भला कहाँ कमी है ! एक को बुलाओः दस था । स्वभाव-दोप के कारण अहनिश प्रलाप हाजिर होंगे । किन्तु आप अपनी जिहवा पर करता था । मार्ग मे घसीटते हुा चलता और नियंत्रण रखिये।" महाराज जी के नाम पर गालियों की बौछार ___ महाराज जी की वाणी मुन, यनि जीनापकरता रहता। विह्वल हो, उनके चरणों मे अक गए । ___उसके मन में यह बात घर कर गई थी। चश्चाताप करते हुए उन्होंने अपने अक्षम्य कि आत्माराम जी ने यहाँ आकर उसका अपराध के लिए क्षमा-याचना की । आहार-पानी बंद करा दिया है। उनके कारण ही उसे आहार-पानी मिलना बंद हो गया है। इधर आत्माराम जी ने अपने डरे पर एक वार श्री आत्माराम जी महाराज अपने आकर भक्त श्रावकों को यति जी की यथायोग्य शिष्यसमुदाय सह श्री सिद्धाचल की यात्रा कर सार-संभाल लेने का उपदेश दिया । 'फल्टनः पुन: लौट रह थे । मार्ग मे उन्होने उक्त एक समय का कट्टर शत्रु, महाराज जी के प्रेम यति को देखा । उन्हें उसपर तरस आ गया। -प्रभाव से उनका अनुरागी बन गया । शत्र उन्होंने पास मे जाकर उसकी पीठ पर हाथ को प्रेम से जीतने की अद्भुत कला आत्माराम फेरते हुए गंभीर स्वर में कहा : जी महाराज को भली माँति अवगत थी। “यति जो, आपको भला इस तरह किसने (क्रमश:) For Private And Personal Use Only
SR No.532033
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 093 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1995
Total Pages20
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
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