SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આ માનદ પ્રકાશ का सुझाव सहर्ष स्वीकार किया। तदनुसार कौन-से पंडित के पास शास्त्राभ्यास एसा तय हुआ कि महाराज जो और श्री किया ?” प्रश्न के उत्तर में शांनिसागर ने शांतिसागर परस्पर मिले. निरवालिस दिल चर्चा शास्त्री रामचंद दीनानाथ का नाम बताया । करे । उस काल में अद्वितीय बाकपटु एवं उक्त शास्री जी का जैन सिद्धांत - शास्त्र समर्थ विद्वान के रूप में सर्वात्र श्री शांतिमागर विषयक ज्ञान कितना परिमिन था और शास्त्री की तृती बजती थी । इधर दोनों के शास्त्रार्थ जी ने जब स्यां महाराज श्री आत्माराम जी उपरांत श्री बुट्टेराय जी महाराज एवं अन्य के पास ग्रों के अभ्यास हेतु निवेदन किया जिज्ञासु बुद्धिजीवियों को अपने-अपने विषय था तव स्वां महाराज जी ने क्यों इन्कार में निर्णय लेने का पूर। स्वातंत्र था । किया था अर्थात् उनकी माँग क्यों अस्वीकार तदनुसार निर्धारित दिन और समय पर भी की थी...यह अपने आप में एक इतिहास दोनों समर्थ पंडित एक स्थान : 'सेठ दलपत- था. जो आत्माराम जी ने कह सुनाया। किसी भी शास्त्री के पास शास्त्रों में भाई भगुभाईवाडी, अहमदाबाद' में उपस्थित उल्लेखित शब्दों के अर्थ सुन लेने भर ये हुए। शास्त्रों का रहस्य-भेद समझ में आ गया, ___ "आप किस आधार पर यह विधान करते यह मानना कोरा भ्रम है । असे ही नम के हैं कि आज कोई साधु है ही नहीं ?" वशीभूत हो कई लोग गलत राह चढ़ जाते “ स्थानांगादि सूत्र के आधार पर ।" है । परिणामतः प्रसंगोपात एसे लोगों को "आपने अन्य किन-किन सूत्रों का अभ्यास लज्जित हो, निचा देखना पडता है । किया हैं ?" जैन शास्त्र अपने आप में कई विशेपता ओ "सूत्र तो बबुत कम पडे है, हमने ।” का अक्षय भंडार है । फलतः योग्य गृम के अभाव में उसके यथार्थ आशय अकेलना... "और, यह तो बताइए कि आपने किन वास्तविक अर्थ लगाना सहज नहीं है । गुरु पंडित के पास रहकर अध्ययन-मनन "यदि आप गुरुजनों के पास रहकर इन किया है ?' __ सब का विनयपूर्वक अध्ययन करते तो आज आत्माराम जी के अंतिम प्रश्न का प्रत्युतर की स्थिति कभी पैदा नहीं होती और ना ही देते समय शांतिसागर को मान्य करना पड़ा श्रद्धाभाव में इस तरह की बोट आती । कि उन्होंने विधिवत् किसी गुरु महाराज के स्थानांगादि सूत्रादि का तत्त्वज्ञान महब अक्षपास अध्ययन अभ्यास नहीं किया है। केवल रार्थो से समझ में नहीं आता बल्कि गुरु पंडित जी के साथ चौठ, कतियप सूत्रों के महाराज जब सामने बैठकर उसक उत्सर्ग और अथों की अवधारणा की थी। अगवाद समझते हैं...मतभंगी और नय For Private And Personal Use Only
SR No.532033
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 093 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1995
Total Pages20
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy