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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नानास विकास करना रहा हो, जिस का जन्म से कयों कि समा बर्मा के भगवान, गुरु, मंदिर, संसारके दुग्वों को दूर करने के लिये पूजा आ और प्रार्थना स्थान भिन्न भिन्न हैं। मर्वत्र सुम्ब का माम्रज्य फैलाने के लिये सभी के धर्मग्रन्थ मान्यनाए और विश्वास भी हुआ हो, जो भौतिक आधि, व्याधि और उपाधि अला अलग है। धार्मिक विषयमें व्यक्ति किसी से युक्त कर मान दिलाने की गारंटी देता हो। एक ही आस्था के साथ जो सकता है और यह संमार को इनना दु:खी क्यों बना रहा है। किसी एक ही आस्था को लेकर मर सकता है। जिसकी शर्त जीवन आनंद और निर्भयता देने यह व्यक्ति की लाचारी है और वह कर भी का या वह आज मनुष्य को मौत, वेदना, डर किसी एक विश्वास को लेकर ही होता है और और आतंक क्यों दे रहा है। धर्म को मनुष्यने धर्म के विषय में जो जितना कट्टर होगा बद्द मलिये धारण किया था कि वह उसे धुत्व, उतना ही धार्मिक असहिष्णु होगा। प्रम और मुक्ति हंगा, परन्तु बजाय इसके वह मर्वप्रथम हमें यह अच्छी तरह समझ लेना हमें घृणा, द्वाप वैर और बंध ही दे रहा है । चाहिये कि धर्म का प्रदुभाँव हुआ और उसके आग्विर सा क्यों हो रहा है । बया धर्म आपने बाद उस धर्म के सम्प्रदाय का। प्राणिमात्र के सना से भ्रष्ट हो गया है। क्या उसका स्वरूप कल्याण के लिये ही धर्म का जन्म होता है। बदल गया है। वर्तमान स्थिति उत्पन्न हुई फिर उस धर्म की रक्षा के लिये सम्प्रदाय का। उसका एकमात्र कारण धम ही है। क्या धर्म मम्प्रदाय का उदेश्य किसी भी उपाय से उस ही इन सभी मंकटों की जड़ है। और यदि धर्म की हिपाजत करना होता है। नब धर्म दब धर्म ही इसका कारण है तो एसे धर्म को तो दर से ही मलाभ करनी चाहिये। चाहे वह जाता है, उसका उदेश्य भी नष्ट हो जाता है केवल बचता है. उसका सम्प्रदाय जिसमें अंध, धर्म जैन हो या बौद्ध, हिन्दु हो या इस्लाम, विवेकहीन लोगों की भीड रहती है। उस भीड मिख हो या ईसाई। सभी धर्म एक ही बन्सी का यह दाबा होता है कि हम अपने धर्म के छेद हैं। इसलिये सभी धर्म अस्वीकार्य है। किसी एक से भी लय सिद्ध नहीं होता। ममी मच्चे प्रतिनिधि हैं। वह भी अपने धर्म धर्म यही दावा करते हैं कि हमने जो सत्य आर सम्प्रदाय के लिये सब कुछ उपयत और खोजा है यही अंतिम सत्य है। इसी धर्म के जायज समझाती है। पालन से मारा मिल सकता है। इसी धर्म से झरना जब पहार से निकलता हैं तब यह संसार को स्वर्ग बनाया जा सकता है। एसे में अपने आप में बहुत पवित्र और स्वच्छ होता इन धमा की सत्यता पर प्रश्न चिन्ह लगता है। है. पर जैसे ही वह अपना स्थान छोड़कर मच्चा धर्म कौन भा है। लोग किसका म्बीकार आगे बटना है । उसमे अन्य अनेक नदी, नाले फरे । कौन मा धर्म उन्हें मुक्ति दे सकता है। नालियां आकर मिलती हैं. और झरने के मूलरूप व्यक्ति किसी एक ही धर्म का पालन कर सकता का विकृत कर देते है। वह झरना चाहकर भी For Private And Personal Use Only
SR No.532028
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 092 Ank 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1994
Total Pages21
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
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