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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી આનંદ પ્રકાશ विजाहरीका विवाह उससे करने का निश्चय कर फिर किसी समय कुमार विजाहर्श के साथ लिया। इसी सम्बन्धमे शास्त्रकारोंका कथन हैं : शत्रजके पासोंके साथ खेलते हुए परस्पर उदयति यदि भानु, पश्चिमायां दिशाया, वार्तालाप कर रहा था तो उस समय कुमारको प्रचलति यदि मेसः, शीनतां याति वसि। विमलमती याद आ गई । राजाकी आज्ञा ले विक्रमनि यदि पा पर्वताग्रे शिलायां कर जिनदत्त अपनी धर्मपत्नी विजाहरीके तदपि न चलतीयं भाविनी रेखा ।। साथ विमानमें बैठकर चम्पानगरीमें गया । वहां __ अर्थातू- यदि सूय पश्चिम दिशाम उदय हो . अअनी विधाका प्रयोग कर वह अदृश्य हो गया। । जावे, यदि मेर चलायमान हो जावे. अग्नि प्रातःकाल होने पर जब विज्ञाहरी जागी तब शीतल बन जावे नथा पर्वतके सबसे उपरवाली उसने अपने पनिको न देखा। इससे उसे बहुत शिला पर कमल उग आवे । तो भी कमरे या दुःख हुआ और मन में ऐसा विचार करने लगी, चलायमान नहीं होती अर्थात कर्मर खा अपना "यह क्या हो गया? मुझे एकाकी छोड़कर फल अवश्य देनी है। कहां चला गया। विधिने मेरे साथ कैसा खेल राजाने ज्योतिषीको बुलाकर शुभ मुहर्त खेला है।” इस प्रकार विचारमग्न महा शोकमें निकाला। जब बेदी में फेरे होनेवाले थे उस डूब गई। विरह से व्याकुल रोती हुई उसने समय कन्याने घरको अपने पिनाने अनिबन्धनी, लोगोंको जिनदत्तका वृत्तान्त कहा। विमलमती जलशोपी, अग्निस्तम्भिनी, मारूपिणी अञ्छनी, का पिता विमल सेठ भी वहां ही उसी नगरमें तारनी आदि मोलह विद्याप' और मन इच्छित रहता था! विमल सेठ उसके पास गया और बननेवाले विमान मांगने को कहा। फिर वहां उसे अपने घरमे' लेकर आया। जिनदत्तकी पर कन्याका पिता आया और उसने घर- दो पत्नियां पहले ही सेठके घर पर थीं, अब राजासे कुछ मांगने को कहा। उस समय बरने तीनों ही एक जगह पर मिल गई। सोलह विद्याए तथा विमान मांगा। कुमारने रूप प्रवर्तिनी विद्या केत्रलसे एक राजा विचार करने लगा, इसने मेरे घर के. . रहस्यको कस जाना ? री पुत्रीने ही इसे कुबडका रूप बनाया । वह उस नगरमे सबको प्रसन्न करने लगा। कहा होगा। ये विचार ना किमीको देनी ही हैं और यह मेरा जामाता भी है और यह वामन ( कुबडा ) रूप जिनदत्त राजाके पास पुरुप संसार में दुर्लभ है। इसको विद्या देकर गर आ गया और वहां पर जाकर अनेक प्रकारसे राजाका सोने पर सुहागेवाला काम होगा। इस प्रकार मनोविनोद करने लगा उसे इनाम भी मिलने विचार कर उसने कुमारको १६ विद्याए और लगे। फिर मंत्री तथा राजाने परस्पर विचार भन इच्छित बननेवाला विमान दे दिया धर्मक किया कि कुबडेको अधिक इनाम आदि देनेसे प्रभावसे उसका काल सुखपूर्वक व्यतीत हो खजाना खाली हो जायगा । एक दिन राजाने रहा था। उसे बुला कर रहा, "विमलसेठकी धर्मशालामे For Private And Personal Use Only
SR No.532027
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 092 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1994
Total Pages28
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
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