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करता कुछ और है और न कुछ और ही जान है । रातको सोते समय मनोरथ कुछ और करता है परन्तु प्रातः होने पर कुछ और ही बन जाता है। भाग्यने ही मेरे आशारूपी वृक्षको जड़ से ही उखाड़ दिया है। मैं कहां जाऊ' ? क्या करू ? मायके जाना उचित नहीं । आत्महत्या करना भी ठीक नहीं। उसने निश्चय किया कि चम्पापुरी में विमलमतीके पास जाना ही ठीक रहेगा । ऐसा विचार कर वह चम्पापुरी में गई।
चम्पापुरी में जाकर सर्वप्रथम वह जिनमन्दिरमें गई। उसने as पर enarrat नमस्कार किया और जिनदत्तका नाम लेकर पुनः नमस्कार किया। विमलमती वहां पर पहले से ही आई हुई थी । विमलमतीने श्रीमती के मुखसे जिनदत्तका नाम सुनकर उससे सारा परिचय प्राप्त किया और उसे सारी स्थितिका ज्ञान हो गया।
विमलमती श्रीमतीको अपने पिता के पास ले गई और वे दोनों दीक्षा लेनेके लिये तैयार हो गई। पिताने कहा, हे बसे ! तुम बारह वर्ष तक प्रतीक्षा करो। हो सकता है कि तुम्हारे पुण्ययोगसे तुम्हारा पति मिल जाए । १२ वर्षसाची जीवन अंगीकार करना स्थगित कर दिया ।
जब जिनदत्तको समुद्र में गिराया गया उस समय समुद्रदेवने तीन बार लहरों में उच्छाल पैदा किया और पूर्वपुण्यके योगसे उसे एक लकड़ीका तख्ता मिला जिसका सहारा ले कर वह समुद्र पार करने लगा ।
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શ્રી. આત્માનંદ પ્રકાશ
रत्नपुरी नगरी में विजाहर नामका राजा रहता था। उसकी ८४ रानियोंमें से अशोकश्री पटरानी थी। उसकी एक पुत्री थी जिसका नाम विज्जाहरी था । वह रूपवती, शीलवती और शील आदि गुणोंसे संयुक्त थी। राजा उसका विवाह करना चाहता था परन्तु वह सांसारिक सुखोंसे विमुख श्री । राजाने उसे समझाया तो उसने उत्तर दिया, हे पिताजी । यदि कोई मनुष्य अपनी दोनों भुजाओं से समुद्रको पार कर यहां आएगा तो मैं उसके साथ विवाह करुगी अन्यथा दीक्षा दूंगी। इसी सम्बन्ध में शासकाका कथन है अघटित घटितानि घटयति,
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सुघटिघटितानि जर्जरी कुरुते । farta तानि घटयति,
afa sara नैव चिन्तयति ॥
अर्थात् जो नहीं घटने वाली घटना है वह घट जाती है और जो घटनेवाली घटनाएं है वह समाप्त हो जाती है, विधि ही ऐसी घटनाओंको घटाता है भी
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नहीं सकता |
समुद्रको तैला हुआ दिन रत्नपुरीमं पहुंच गया। जब वह समुद्र से निकलकर उसके किनारे पर पहुंचा तो राजपुरुषोंने उसे देख लिया तथा वे उन्हें राजाके पास ले गये । राजा उसके विनय आदि शुगोंको देखकर विचार करने लगा कि यह कुलीन है। कहा भी है, " आचार कुलमाख्याति " अर्थात आचार कुलको कहता है । राजाने अपनी पुत्री