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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जब कि वास्तविकता यह थी कि आत्माराम जी महाराज को अपने जीवन में संगीत - साधना करने का का मौका ही नहीं मिला था और ना ही वह कभी किसी उस्ताद के पास तालीम हासिल करने गये थे । उस समय के सयोग ही ऐसे थे कि उनमें और संगीत में कोसो अंतर पड़ गया था । "स ंगीत - वगीत से हमारा कभी वास्ता ही नहीं पड़ा । " अधीर भक्त के आश्चर्य का पारावार न रहा । तब भला यह कैसे संभव है ? संगीत की साधना किए बिना सौंपूर्ण व्याख्यान में एक लयता आ ही कैसे सकती है ? अवश्य इसमें कोई रहस्यभेद है | वरना ऐशा हो हो नहीं सकता | जिज्ञासु भक्त स्वयं संगीत का अच्छा बात टालने मात्र से उसे भला संतोष कैसे पल स्तब्ध हो, वह महाराज जी की ओर ही रहा । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३ " उपाश्रय के आस-पास स्थित मकानों से रात्रि के समय संगीत के सुर जब कान पर टकराते अथवा गृहणियों की मधुर गुनगुनाहट सुनाई पड़ती, तब मैं उन सार और सुरों का ध्यानपूर्वक सुनता | मन ही मन संगीत की मृदुता एवं महत्ता For Private And Personal Use Only झाता था । अतः होता ? पल दा अनिमिष देखता
SR No.532026
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 092 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1994
Total Pages24
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
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