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नालामाबगलामासनामागारामामामानामबाबारामबाण
बालबामालाबालाल धर्म का महत्व BBEलायमान
जीवन-विकास के लिये मैंने आपको धर्म- मत्त चैतान्शुभस्थाने तस्माद्वर्म इति स्मृतः ॥' अर्थ-काम इन तीनों पुरुषार्थो के साधन अर्थात दुर्गति में गिरते हुए प्राणी को करने का अनुरोध किया, उसमें अर्थ और धारण करता हैं, इसलिये धर्म है। केवल काम की साधना कैसे हों ? वह पुरुषार्थ धारण करता है, उतना ही नहीं, धारण कब हो सकता है ? ये बाते मै अबतक जाप करके अच्छे स्थान में रखता है। शुभस्थान को बतला चूका हूं।
____ में स्थापित करता है. हमें अपनी जगह पर अब मै आज 'धर्म' के विषय में कहुगा। बिठाता है । इतना काम करता हैं, तब अर्थ और काम की अपेक्षा यह विषय विशेष धम' कहलाता है। महत्व रखता है, क्यों कि आज सारे झगडें चाहे कोई साघु हों, किसीभी सम्प्रदाय हिन्दु-मुसलमान, जैन और बौद्ध, जितने भी का आचार्य हो, महापुरूष हो, किसी भी संसार के मनुष्य हैं, वे सब इसी 'धर्म' का धर्म को माननेवाला हो. मान्य है। किन्तु नाम लेकर अधर्म का आचरण करते है। वह धर्म के नाम से रगड़ा-झगडा करे, क्लेशलडाई और झगडे करते है। ___कंकास करे, टंटा फिसाद करे, खून-खराबी __यही कारण है कि लोग नास्तिक होते करे, हर तरह से धृणित बुराईयों अगर धर्म जा रहे है । 'धर्म' और 'ईश्वर' यह सब के नाम से करे, तो वह मान्य नहीं हो ढोंग है, इस प्रकार समझते जा रहे है। सकता, और वह 'धर्म' धर्म नहीं हैं बल्कि और ऐसा साहित्य हमारे देखने में आ रहा भयंकर से भयंकर अधर्म है। इसे खूब याद हैं । इन धार्मिक लडाई झगडों के कारण रखिये । धर्मका महत्व कितना है ? हमारे युवकों की धर्म पर से-साधुओं पर से युरोप की बात छोड दीजिये, वह तो श्रद्धा कम होती जा रही है ।
जडवादी देश है, जङकी उन्नति ही अपना धर्म का महत्व
सब कुछ समझ रहा है। लेकिन हमारे देश में, धर्मकी कितनी आवश्यकता है ? धर्म क्या चाहे वह हिन्दु हो, जैन हो, बौद्ध हो, पारसी चीज है ! यह बतलाउगा । शास्त्रकारोंने हो, मुसलमान हो, सिक्ख हो,-ई भी सम्प्र. इसका इस तरह वर्णन किया हैं- दाय ये हो, धर्म को प्राण समझे हुए है । 'दुर्गतौ प्रपतत प्राणीन धारणात् धर्म उच्चते। शास्त्रकारोंने धर्म के निमित्त से ही शास्त्र
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