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कहा- 'महाराज ! यशोविजयजी का व्याख्यान यह सुनकर यशोविजयजी बहुत लज्जित चल रहा है, आप भी व्याख्यान करिये । हो गये । पश्चात्ताप करने लगे । 'अरे मेरे
जैसा अभिमानी मनुष्य कोई और हैं ? काशी 'एक दुकान चलती है, बहुत है। दो ,
में रहकर पढा, शास्रों का ज्ञान हासिल किया दुकाने चलाने की जरुरत नहीं । तुम्हे जो
लेकिन इन महापुरुषों के ज्ञान के आगे मेरा माल चाहिये, वहीं से मिल जाता हैं ।'
ज्ञान कोई चीज नहीं हैं।' खैर, आनन्दघनजी बडे योगी, महात्मा थे। आनन्दधनजी और यशोविजयजी दोनों मित्र कहने का मतलब क्या है ? विद्वान वही थे । दोपहर को दोनों एक जगह बैठे हैं । है, ज्ञानी वही है, सज्जन वही हैं, साधु वही बाते कर रहे है । आन-दधनजी ने यशोवि- है, आत्मार्थी, वीर, शक्तिशाली और समृद्धिजयजी के सामने एक बात कही: 'सबसे बडे श ली बही है जो अभिमान नही करता है। से बडा ज्ञानी आप किसको समझते है ? यशोविजयजी ने उत्तर दिया किः 'केवलज्ञानी एक साधु, ज्ञानी, सन्त, समझदार, विद्वान को । केवली भगवान का ज्ञान सबसे बड़ा होते हुए भी यदि अभिमान है, तो समज होता हैं ।' 'उनके नीचे किस को गिनते हो? लेना चाहिये कि उतने ही अंशो में वह हीन आनन्दजीने पोजिसन है, कम है । जो सच्चे सज्जन, महापुरुष, दिया कि 'जो १४ पूर्वघारी थे उनको'।'
ज्ञानी, सन्त और साधु पुरुष है, वे कभी 'उनसे नीचे ?' 'बडे बडे महापुरुष-हरिभद्र
अभिमान नहीं करते, और किसी की मिन्दा
__ भी नहीं करते । परन्तु आजकल, दुःख है कि सूरि, सिद्धसेन दिवाकर आदि आदि' । 'और
हम इन बातों को नहीं समजते, दूसरों की उनके नीचे किनको गिनते है ?' हेमचन्द्राचार्य
निन्दा करते हैं, दूसरों के छिद्र ही छिद्र देखते आदि अनेक हो गये ।'
रहते है, लेकिन अपने में हजार छिद्र भरे है। इन लोगों के ज्ञान के आगे आपका ज्ञान उनको कभी नही देखते । ज्यादा है या कम है ?' 'आप क्या बात करते हैं ?' यशोविजयजीने कहा- 'मेरा ज्ञान कहां और इनका ज्ञान कहां? उनके समुद्रका एक बिदु मात्र को भी मैं नहीं पा सका'
__मनुष्य को कितना भी वैभव क्यों न प्राप्त
हो जाय अथवा कैसी भी दरिद्रावस्था में - 'जिनका ज्ञान आपसे इतना ज्यादा था, उसे रहना पडे, नीति का त्याग नही उन्होने कभी ५०० झडीय आगे लेकर विहार करना चाहिए । किया है ?
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