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આમાન દ પ્રકાશ
सत्संगति दूध ओर पानी दोनों अभिन्न मित्र है। हंसते-हंसते प्राण देकर तुम्हारी रक्षा करूंगा' दोनों सुख-दुःख में एक दूसरे के साथी बने यही होता है, पहले पानी जलता है उसके रहते है । दूध के प्रेम में पानी अपना बाद ही दूध जलता है । अस्तित्व छोडकर दूध में ही समा जाता है तो दूध भी सब भेदभाव भूल कर पानी को दूध भी कम नहीं है । अपने मित्र को इस तरह से अपना लेता है कि अपना रुप,
___ जलता देखकर वह भी जब्त नही कर पाता। गुण, और मूल्य देकर उसे अपने जैसा बना
मित्र के विछोह से दुखी होकर वह भी आग लेता हैं और पानी दूध के साथ, दूध के मोल
में कूदने के लिए लपकता हैं । कई बार दूध बिकता है । यह सत्संग का फल है। मित्रता भी उफन कर अपने मित्र के साथ आग में की परख संकट के समय होती हैं। इस कूद जाता है । ऊफनते हुए दूध को जल के कसौटी पर दोनों मित्र एक दूसरे से बढकर
चार छीटे शांत कर देते है और दूघ का सिद्ध होते है । जब आग पर दूध गरम किया
उफान बैठ जाता है । दू घ-पानी जैसी एकता जाता है तो पानी दूध से कहता है 'मित्र इस
मित्रता को अच्छा उदाहरण है । पानी की संकट की घडी में भी मै तम्हारे साथ में तरह हमें भी अच्छे लोगों की ही संगति मेरे होते हुए आग तुम्हे जला न सकेगी। करना चाहिए क्योंकि अच्छी संगति जहाँ मैं स्वयं जल जाऊंगा पर तुम्हें जलते न देख बुराईयों से हमारी रक्षा करती है वहीं हमारी सकू गा क्योंकि तुमने मुझ जैसे तुच्छ पदार्थ अच्छाईयों को विकसित और मजबत भी को मित्र बना कर इस तरह से अपना लिया कि कोई अलग ही न कर सके तो मैं भी
__ करती है ।
जैसे तू बे पर मिट्टी की पत लगाने से वह भारी हो जाता है और पानी में डुबाने से डब जाता है, ठीक वैसे ही हिसा, असत्य, चोरी, व्यभिचार, तथा मूर्छा-मोह आदि आस्व रुपी कर्म करने से आत्मा पर कर्मरूपी मिट्टी की पर्ते जम जाती है
और वह भारी बनकर अघोगति को प्राप्त होती हैं । यदि उसी तू बे की मिट्टी की पर्ते हटा दी जाय, तो वह हल्का होने के कारण पानी पर तैरने लग जाता है । जैसे ही यह आत्मा भी जब कर्म बंधनों से सर्वथा मुक्त हो जाती हैं, तब उर्ध्वगति प्राप्त कर लोक के अग्र भाग पर जाकर स्थिर हो जाती है ।
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