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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०] पश्चिम का राज़ देदिया । इसीतरह तीसरे और चौथे श्लोक सुनाने पर राजा उत्तर और दक्षिण दिशाओं का भी राज्य दे देता । और चारो दिशाओं का राज्य देकर राजा विक्रमादित्य सिद्धसेन के चरणों में गिर जाता हैं । मैं विक्रमादित्य कह रहै- 'राजन ! राज्य लेने नहीं आया हु । आप अपना राज्य संभालिये। मेरा तो काम इतना मात्र है कि - साम्प्रदायिक मतभेद के कारण से हमारे धर्म का कार्य रूका हुवा हैं । आपको चाहिये कि हमारा यह कार्य करवादें । राजा फौरन हुक्म करदेता है । कहने का तात्पर्य यह है कि सिद्धसेन दिवाकर जैसे प्रकाण्ड विद्वान आचार्यने भी द्रव्य, क्षेत्र और काल भाव को देखकर धर्म की रक्षा के लिये इस बात का विचार नहीं किया कि मैं अपने चारित्र - साघुपने का ख्याल रखकर के राजा के पास क्यों जाऊ ? क्यों उसकी खुशामद करु ? क्यों उसे प्रसन्न करने की कोशिश करु ? अगर वे अपने आचार्य पन के साधुपन के अभिमान में रहते तो काम नहीं कर सकते थे । हेमचंद्राचार्य और ब्राह्मण पंडित खादी के मोटे कपडे पहन हेमचन्द्राचार्य पाटन के बाज़ार में होकर निकलते है । एक मोटा डंडा हाथ में लिये है । कन्धे पर मोटा कम्बल रखा है । मोटा ताजा शरीर है । एक पण्डित सामने मिलता है । पण्डित [ आत्मानंद प्रकाश जानता हैं कि ये हेमचन्द्राचार्य है । प्रकाण्ड विद्वान है । इन्होंने ज्ञान का कोई विषय ऐसा नहीं छोड़ा जिसे ये न जानते हों । इन्होंने सभी शास्त्र बनाये है, यहांतक कि कामशास्त्र भी । पांच वर्ष की उम्र में ये गुरू को सोप दिये गये थे । आप जान सकते है कि इस हालत में इन्हें संसार का क्या अनुभव होगा ? परन्तु नहीं इनका ज्ञानबल बडा ही प्रचंड था । कहा जाता है कि साढेतीन करोड श्लोक उन्होंने बनाये है । पण्डित मश्करी करते हुये कहता है-आगतो हेमगोपालो दण्डकम्बलमुद्वहन् ।। यह 'हेम' नाम का ख़ाला सामने से आ रहा है, जिसके हाथ में डंडा है और कन्धे पर कम्बल हैं । बात ठीक है । क्योंकि खाले के सभी बाह्य लक्षण इनमें थे। हाथ में मोटा डण्डा भी था और मोटा कम्बल भी खंधेपर डाला था । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हेमचन्द्राचार्यने विचार कर लिया कि इसने बराबर मरा मश्करी की है । इसे जवाब जरूर देना चाहिये । बोलते हैंआगतो हेमगोपालो दण्डकम्बलमुद्वहन् । षड्दर्शन पशुप्रायांश्चरयन् जैनवाटके || जरुर तुम कहते हो सो ठीक हैं । हेम ग्वाला आया हैं । पर यह कैसा ग्वाला है, यह तुम्हे नहीं मालूम। सुनो, यह षटदर्शनरूप पशुओं को जैन वाडे में चराता हुआ ख़ाला है । मित्रो ! देशिये, यह थी । कोई बुरी मश्करी भी नहीं । जैसा सवाल, For Private And Personal Use Only विद्वानों की मश्करी नहीं थी । कुतर्कं ठीक वैसा ही जवाब |
SR No.532017
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 091 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1993
Total Pages26
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
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