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आत्मानंद प्रकाश ]
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भक्त रहे हैं उनका नाम तख्ती पर अंकित पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा किया जाएगा।
कि इस युग के केवल एक ही आचार्य की इस प्रतिष्ठा महोत्सव में पंजाब से आए प्रतिमा शत्र जय गिरिराज पर स्थित है । गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे । श्री सीक दर- और वह भी दादा की टक में । इस प्रतिमा लालजी आदि गुरुभक्तों ने गुरु आतम के गीत की प्रतिष्ठा के बाद सेठ श्री आनंदजी कल्यागाकर सभी को गुरुभक्ति में तल्लीन किया । णजी पेढी ने अन्य किसी भी आचाय की गरु विजयानंद के गगनभेदी जयनादों के बीच प्रतिमा कीप्रतिष्ठापर प्रतिबध लगा दिया था। इसकी प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई ।
- भव्य संक्रांति समारोह १ शत्र जय गिरिराज की शीतल छाया में उसकी सिद्धि तब तक नहीं होती जब तक और पालीताणा की पुण्य भूमि पर यह कि उसके पीछे तपश्चर्या न हो । आत्मा की कितना सुनहरी अवसर था कि पूज्य गुरुदेव निर्मलता और शुद्धता के लिए तप उतना ही एवं कार्यदक्ष आचार्यं श्रीमद विजय जगच्चन्द्र आवश्यक है । पूज्य गुरुदेव ने वर्षीय तप सूरीश्वरजी म. की पावन निश्रा में तीनों ही जैसी कठोर तपस्या करके अपने आत्मा की प्रसंग एक साथ उपस्थित हो गए थे। दि. शुद्धता और निर्मलता की है । १२-५-९४ को गिरिराज पर गुरु आतम की इस प्रसंग पर अनेक गुरूभक्त गायकों ने प्रतिमा की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई।
गीत गाकर गुरुदेवों के प्रति अपनी भावांजलि दि. १३-५ को पूज्य गुरुदेव सहित ३३ अर्पित की । जिन में प्रमुख है- श्री तरसेम साधु-साध्वियों के वर्षीतप का पारणा समा. कुमार जैन, वल्लभ जैन महिला मंडल रोह सम्पन्न हुआ ।
बीकानेर, श्री विनोद जैन, मालेरकोटला, दि. १५-५ को संक्रांति का भव्य समा- बीना जौन, लब्धिसागर, आगरा, श्री चांदमल रोह सम्पन्न हुआ ।
कोठारी आदि । सर्व प्रथम पूज्य गुरुदेव के मंगलाचरण के श्री जैन आत्मानंद प्रकाश' जो ५१ वर्ष बाद उपाध्याय श्री वीरेन्द्र विजयजीने अपना से गुजराती में प्रकाशित होता था उसमें प्रारंभिक प्रवचन किया। उन्होंने तप के पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से हिन्दी विभाग विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा प्रारंभ किया गाया । उसका विमोचन श्री कि तप से शुद्धि होती है और शुद्धि से सिद्धि वी. सी. जैन के द्वारा किया गया । चाहे आध्यात्मिक कार्य हो या सांसारिक इस संक्रांति समारोह में पंजाब से स्पैशल
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