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जनधर्म प्रा
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. Yस्त: १८४ : गण :
| વીર સં ૨૪૮ ४५
वि. स. २००४ मरुदेवी-मोहविलसित। ( कवि-साहित्यचन्द्र बालचंद हिराचंद, माळेगाव ) योलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन ?
जंगल में वह फिरता होगा
- भूखतृषा से पीडित होगा अन्न वस्त्र जल उसे कहां से कौन खिलाये सुंदर भोजन ? बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन ? ॥१॥
गर्मी सरदी पीडा होंगी
निद्रा कैसे कहां मिलेंगी? मैं ईमाता दुखिनी उसकी दुःखों की मैं हो गई भाजन बोळो कोई बतलाबोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन ? ॥ २ ॥
वस्त्र उसे कोई मिले कहां से?
__ सोना उसको नित्य धरा से कहो कोई संदेश ऋषभ का मेरा बनकर बंधु साजन बोळो कोई बतलावोजी कषय कहां है मेरा जीवन ? ॥ ३ ॥
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