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શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ.
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श्री जैसलमेर तीर्थ स्तवन.
( मेरी अरजी यह चाल )
जैसलमेर तीरथ को जुहार करो,
प्रभु वंदन पूजन ध्यान धरो- अंचली. सिद्धाचलादि जैन तीरथ हैं जगत में जानिये, वैसा ही तीरथ है यही यात्रा करी मन मानिये.
तारे तीरथ भविजन तीर्थ खरो-जैसल० १ ॥
है अपूरव तीर्थ जैसा जाने यात्रा जो करे, बिन अनुभव जीव जगमें चारगति रुलता फिरें.
तीर्थ यात्रा से फटे कर्म घरो-जैसल० २॥
हे प्रभुजी आप तीर्थकर बने तीरथ करी. मैं तुमारे तीर्थ में होकर फिरूं कैसे घरी.
अब तो जल्दी से बेड़ा पार करो-जैसल० ३।।।
नव नवे हैं नव जिनालय माना नवपद पुंज है, तत्त्व नव प्रभु ने प्रकासे मानो उनकी गुंज है.
ब्रह्मचर्य की शुभ नव वार धरो-जैसल० ४ ॥
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