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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir કલકતામાં મળેલી અગીઆરમી શ્રી જૈન ભવેતાંબર કેન્ફરન્સ. ૧૪પ ५ सेगमा-श्री सुस्त २५७. यह कान्फ्रेन्स दृढता और आग्रहके साथ अपील करती है कि प्रत्येक वर्ष हरएक श्रावक और श्राविकाओं को कमसे कम चार आने श्री सुकृत भण्डारमें देना चाहिये क्योंकि इस फंडके ऊपर कोन्फरन्सके आरम्भ किये हुए कार्य निर्भर है. આ ઠરાવ શેઠ લાલભાઈ કલ્યાણભાઈ વડેદરાવાળાએ રજુ કરવા પછી રા. રા, મૂલચન્દ આશારામ વેરાટીએ અનુમોદન આપવા પછી ઠરાવ પસાર કર્યો હતે. १ सतर:-७वहया. “अहिंसा परमोधर्मः यतोधर्म स्ततो जयः" अपने लोगोंका यही सर्वोपयोगी प्रथम सिद्धांत है, इसलिये यह कान्फ्रेन्स आजके इस अधिवेशनमें समस्त समुपस्थित दयालु सज्जनोसे इसी सिद्धान्तको अधिक मजबूतीसे यथेष्टरुपमें फैलानेकी आन्तरिक प्रार्थना करती है. __इस कार्यके सम्बन्धमें बम्बइका श्री जीवदया ज्ञानप्रसारक फंड, धुलियाकी श्री प्राणी रक्षक संस्था और अन्य मंडलो जो कार्य कर रहा है उसको यह कान्फरन्स धन्यवाद देती है । इस प्रस्तावकी नकलें जूदे जूदे शहरोंकी म्युनिसिपालीटीका चेयरमेन और बंगालका श्रीमान गवर्नर साहेव और दुसरे प्रांतोंका उपरी अधिकारियोंको भेज दी जाय। આ ઠરાવ રા. ર હાથીભાઈ કલ્યાણજીએ રજુ કરતાં મનુષ્ય દયા અને હૃદય ઐક્યની દયા તરફ વધારે ભાર મુક્યો હતો, ત્યારબાદ મી. બી. એન. ઐશરીએ તથા મી. શામજી લાડણે વધુ વિવેચન કરવા પછી ઠરાવ પસાર કરતાં તેમાં શ્રી મુંબઈનું જીવદયા જ્ઞાનપ્રસારક મંડળ જીવદયા માટે જે શ્રમ લે છે, તે માટે ધન્યવાદ આપવાનું જાહેર કરવામાં આવ્યું હતું. ४२११ १८ भी, हानिकारक रिवाज. अपनी जातिमें आजकल हानिकारक रिवाजें जैसे कन्याविक्रय वालविवाह, वृद्धविवाह, वेश्यानाच, मृत्यु पीछे अधिक शोक करना, मिथ्यापर्वोका मानना, एक स्त्रीकी मौजूदगीमें दुसरी शादी करना, आतशबाजी छोडना आदि जो कुरीतियां प्रचलित है उन शबको सर्वथा छाडनेके लिये यह कोन्फरन्स उपदेश करती है। For Private And Personal Use Only
SR No.531174
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 015 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha Bhavnagar
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1917
Total Pages28
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size4 MB
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