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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ. & आवश्यक सूचना * हमारे पल्लीवाल भाइयो! आजकल संसार में समस्त मानव जातियां अपनी २ उन्नति करने में संलग्न हैं । जहां तक दृष्टि पहुंचती है प्रत्येक मनुष्य तन मन धन से अपनी जाति के उत्कर्ष के लिए प्रयास कर रहा है। सर्वत्र उन्नति तथा सुधार की पुकार सुनाई देती है तथापि बडे खेदके साथ निवेदन करना पडता है कि हमारी पल्लीवाल जाति परमोपकारी भगवान श्री महावीर स्वामी जी की सन्तान कहलाने पर भी अबतक एसी गाढ निद्रा में सोई हुई है कि जिसका पारावार नहीं । उसे इस प्रकाशमय जगत में अबभी अपनी उन्नति तथा अवनति का ध्यान नहीं है । उसी अन्धकार में भूले भटकों की भांति चलने का स्वभाव विद्यमान है। कुछ भाई श्वेताम्भर आम्नाय को त्याग कर दिगम्बरादि आम्नाय धारण कर रहे हैं । उनको इतने पर भी संतोष नहीं किन्तु अन्य पल्लीवाल भाइयों के प्रति दिगम्बर आम्नाय को प्राचीन बतलाकर पूर्वजों की सनातन श्वेताम्मवर आम्नाय को त्याग कराने की चेष्टा कर रहे हैं; और मन्दिरो में श्वेताम्बर मूर्तियोंके स्थान दिगंबर मूर्ति यां विराजमान करते जाते हैं और श्वेताम्बर आम्नाय का विधिसे पूजन इत्यादि भी करनेसे रोका जाता है इसका एक मात्र कारण यही है कि हमारी पल्लीवाल जातिमें अपने कर्तव्यका ध्यान नहीं है क्योंकि उन्हें श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार उपदेश नहीं मिलता प्रत्युत्तर इसको यह की दीगंवर संप्रदायकी अनुकुल मिलने वाले हिन्दी भाषा के ग्रन्थ अथवा समाचार पत्रों को पढकर अपने भावों को बदलते हैं। परन्तु अपने सम्प्रदाय तो किसी मुखपत्र के देखने का ध्यान नहीं देते इस त्रुटि का मूल कारण यह है कि अधिकांश में हमारे ग्रन्थ अथवा समाचारपत्र संस्कृत अथवा गुजराती भाषा में मिलते है अतएवं ऐ जातिके नेताओ ! घोर निद्रा से उठो और इश शोचनीय दशा की और ध्यान दो कि अपनी प्राचीन श्वेताम्बर आम्नाय के अनुसार पूजन इत्यादि धमें कार्य करने में असमर्थ रहोगे अतः ऐसे महाशयों से भी प्रार्थना है कि जो श्वेताम्बर सम्प्रदायको भूल गए हैं वह अपनी प्राचीन श्वेताम्बर आम्नाय को धारण करें क्यों कि विचार से ही उन्नति हो सकती है ॥ इस गिरि हुई दशा में भी पल्लीवालों के आदि से श्वेताम्बर होने के बहुत से प्रमाण हैं जिनमें से कुछ निम्न लिखित प्रमाण दिये जाते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.531170
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 015 Ank 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha Bhavnagar
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1917
Total Pages30
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
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