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શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ,
लोगों का यहां पर जिस लिए आना हुआ है वह तो आपको विदित ही है बडे हर्षका समय है कि आज हम तुम जिस महापुरुषकी जयंति करने के लिए उपस्थित हुए हैं उनका नाम था श्रीमद्विजयानन्दसूरि श्री आत्मारामजी महाराज | आप जैनधर्मके नामांकित आचार्योंमेंसे वर्त्तमान कालमें बड़े विद्वान् प्रतिभाशाली अग्रगण्य सत्पुरुष थे । आपका प्रताप हमें तुम्हें आपके इस सिंहासन पर विराजमान की हुई मूर्त्तिसे ही झलक रहा है । आपका जीवनचरित्र संसारी जीवो के लिए बड़ा ही उत्तम एवं अनुकरणीय है ।
आप क्षत्रीकुलमें उत्पन्न हुए थे आपे वाल्यकालमें ही संसारकी मोहजाल तोड कर मुक्ति पथपर सवार हो गए थे. और अनेकोंका आपने अपना अनुगामी बनाया था. आपने अपने जीवन में गुजरातसे पंजाब और पंजाव से गुजरातका दो बार चक्कर लगाया. उस दरमियान में आपको अनेक प्रकारके परीषोंके अलावा बड़े बड़े कष्टों का सामना करना पड़ा. परंतु आपने उनकी कुछ परवाह न करके संसारी जीवों के उद्धारका ही प्रयत्न अंतसमय तक जारी
रक्खा ।
आपने विश्व मात्र के प्राणीयोंके उद्धारमें अपना आत्मोद्धार समझा था । आपकी ज्ञानशक्ति बड़ी ही अलौकिक थी । आपके पास कोई कुछ अपना संदेह दूर करनेको आताथा तो आप उसे बड़े ही मधुर शो सशास्त्र युक्ति पूर्वक उत्तर देते थे आगलेका समाधान करनेको बाज वक्त तो आपकी शक्ति साक्षात् बृहस्पतिका काम करती थी । पाश्चात्य विद्वान डॉ० हर्नल महोदयने एक उपासकदशाङ्ग सूत्रका इंगलिश अनुवाद किया है जिसमें महोदय साहबने आपकी स्तुतिके चार श्लोक रचकर वह ग्रंथ आपको ही अर्पण किया है | महोदय साहब आपके विषयमें लिखते हैं कि
दुराग्रह ध्वान्त विभेदमानो हितोपदेशामृत सिन्धु चित्त,
सन्देह सन्दोह निरास कारिन् जिनोक्त धर्मस्य धुरन्धरोसि ॥ १ ॥ अज्ञानतिमिर भास्कर - अज्ञान निवृत्तये सहृदयानाम् आ तवादर्श - ग्रन्थमपरमपि भवानकृत आनन्दविजयश्रीम- न्नात्माराम महामुने मदीय निखिलप्रश्न व्याख्यातः शास्त्रपारग
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॥ २ ॥
॥ ३ ॥